Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 15
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अथ क्षुद्रमिवच्छिखरस्थित भूमिभागवर्त्ति पद्मदं वर्णयितुमाह-- ' तस्स णं' इत्यादि । मूलम् - तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदे सभाए एत्थ णं इक्के महं पउलदहे णामं दहे पण्णत्ते, पाईणपडिगायए उदीण दाहिणवित्oिणे इकं जोयणसहस्सं आया मेगं, पंच जोयणसयाई विभे गं, दस जोयणाई उव्वेहेणं अच्छे सपहे रययामयकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवेत्ति से णं एगाए पउमवरखेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते वेइया वणसंडवण्णओ भाणियव्वोत्ति । तस्स णं पउमदहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णावासो भाणियव्वोत्ति । तेसि णं तिसोवाणपडिरुवगाणं पुरओ पत्तेयं २ तोरणा पण्णत्ता, तेणं तोरणा णाणामणिमया, तस्स णं पउमदहस्त बहुत ज्झदेसभाए एत्थ महं एगे पडले पण्णत्ते, जोयणं आयामविभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेगं दस जोयगाई उठचेहेणं दो कोसे उलिए जलताओ साइरेगाई दस जोषणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते । से णं एगए जगईए सओ समता संपरिक्खित्ते जंबुद्दीवजगइप्पमाणाTarance वि तह चेत्र पत्राणेति । तस्स णं पउमस्स अयमेरूवे वणवा पण्णत्ते, तं जहा- वइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, वेरुलिया ए जाले, वेरुलियामया बाहिरपत्ता, जंबूणयामया अभितरपत्ता, तवगिज्जतया केसरा, णाणामणिमया पोक्खरट्टिभाया, कणगामई कण्णिगा, साणं अजोयणं आयामविवखंभेणं कोसं बाहल्लेणं, सकणगामई अच्छा । तीसे णं कणियाए उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहा णामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ सू० २ ॥ ६ छाया - तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागे अत्र खलु एको महान् पद्महृदो नाम हूदः प्रज्ञप्तः, प्राचीनप्रतीचीनायतः उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णः एकं योजनसह समायामेन पञ्च योजनशतानि विष्कम्भेण दश योजनानि उद्वेधेन, अच्छः श्लक्ष्णः रजतमयकूलः यावत् प्रासादीयः यावत् प्रतिरूप इति । स खलु एकया पावरवेदिकया एकेन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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