Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 14
________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० १ क्षुल्लहिमवर्षधरपर्वतनिरूपणम अभिरूपः इत्येषां सङ्ग्रहः फलितः। एतद्व्याख्याऽत्रैव चतुर्थसूत्रे जगती वर्णने प्रोता, साऽत्र लिङ्गव्यत्ययेन वाच्या स पुनः 'उभओ' उभयोः द्वयोः 'पासिं' पार्श्वयोः 'दोहिं' द्वाभ्यां 'पउमवरवेइयाहिं' पद्मवरवेदिकाभ्यां च पुनः 'दोहि य वणसंडे हिं' द्वाभ्यां वनपण्डाभ्यां 'संपरिक्खित्ते' संपरिक्षिप्तः संपरिवेष्टितोऽस्ति, तद्वेष्टनभूतयोः 'दुण्ह वि पमाणं' द्वयोरपि प्रमाणं 'वण्णगोत्ति' वर्णकश्चैतद्वयं चतुर्थपंचम सूत्रव्याख्यातो वोध्यम् इति । अस्य 'चुल्लदिम वंतस्स वासहरपव्ययस्स' क्षुद्रहिमवतो वर्षधरपर्वतस्य 'उवरि' उपरि-ऊचे शिखरे 'बहुसमरमणिज्जे बहुसमरमणीयः-अत्यन्तरमणीयः 'भूमिभागे पण्णत्ते' भूमिभागः प्रज्ञप्तः तद्वर्णनायाह'से जहा नामए' इत्यारभ्य 'जाव विहरंति' इत्यन्तं सर्व विवरणं पष्ठसूत्रतो बोध्यम् ॥सू० १॥ की व्याख्या यही ४ थे सूत्र में जगती के वर्णन के प्रसङ्ग में कही जा चुकी है अतः लिङ्गव्यत्यय करके उसे यहां व्याख्या के रूप में ग्रहण कर लेना-चाहिये (उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहिं य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते दुण्ह वि पमाणं वण्णगोत्ति) यह क्षुद्रहिमवत् पर्वत दोनों ओर दो पद्मवर वेदिकाओं से और दो वनषण्डों से घिरा हुआ है इन वनषण्डों का वर्णन एवं प्रमाण चतुर्थ पंचम सूत्र की व्याख्या से जानलेना चाहिये (क्षुल्लहिमवंतस्स वासहर पव्वयस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहा णामए आलिङ्गपुक्खरेइ वा जाव बहवे वाणमंतरा देवाय देवीओ य आसयंति जाव विहरंति) इस क्षुद्रहिमवत् वर्षधर पर्वत के ऊपर का भूमि भाग बहसमरमणीय है और वह ऐसा बहुसमरमणीय है कि जैसा आलिङ्ग पुष्कर-मृदङ्ग का मुख होता है यावत् यहां अनेक वान व्यन्तरदेव और देवियां उठती बैठती रहती है। इस विवरण को जानने के लिये छट्ठा सूत्र का विवरण देखना चाहिये ॥सू०१॥ સંગ્રહીત થયા છે. આ પદોની વ્યાખ્યા એજ ૪ થા સૂત્રમાં જગતીના વર્ણન પ્રસંગમાં કહેવામાં આવેલ છે. એથી લિંગ વ્યત્યય કરીને અત્રે વ્યાખ્યા રૂપમાં ગ્રહણ કરી લેવી नसे. 'उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहिं य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते दुण्ह वि पमाणं वण्णगोत्ति' से क्षुद्र भिवत् पर्वत मन्ने त२६ मे ५५१२ माथी मने मे વનખંડથી આવૃત્ત છે. એ વનખંડેનું વર્ણન અને પ્રમાણ ચતુર્થ અને પંચમ સૂત્રની व्यायामांथी ajी देवु नये. 'क्षुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्ययस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिङ्गपुक्खरेइवा जाव बहवे वाणमंतरा देवाय देवीओय आसयंति जाव विहरंति' से क्षुद्र हिमवत् वर्ष ५२ पतन। ५२ने भूमि माग બહુસમ રમણીય છે અને તે એ બહુસમરમણીય છે કે જેવું આલિંગ પુષ્કર–મૃદંગનું મુખ હોય છે. યાવત્ અહીં અનેક વાનવ્યંતર દેવ અને દેવીઓ ઉઠે છે બેસે છે. એ અંગેનું વિવરણ ષષ્ઠ સૂત્રમાં આપવામાં આવેલ છે. | સૂ.- ૧ છે Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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