Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 10
________________ सम्पादन के विषय में - प्रस्तुत संस्करण के मूल पाठ का मुख्यतः आधार सेठ श्री देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड सूरत से प्रकाशित वृत्तिसहित जीवाभिगम सूत्र का मूल पाठ है परन्तु अनेक स्थलों पर उस संस्करण में प्रकाशित मूलपाठ में वृत्तिकार द्वारा मान्य पाठ में अन्तर भी है। कई स्थानों में पाये जाने वाले इस भेद से ऐसा लगता है कि वृत्तिकार के सामने कोई अन्य प्रति (आदर्श) रही है। अतएव अनेक स्थलों पर हमने वृत्तिकार-सम्मत पाठ अधिक संगत लगने से उसे मूलपाठ में स्थान दिया है। ऐसे पाठान्तरों का उल्लेख स्थान-स्थान पर फुटनोट (टिप्पण) में किया गया है। स्वयं वृत्तिकार ने इस बात का उल्लेख किया है कि इस आगम के सूत्रपाठों में कई स्थानों पर भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। यह स्मरण रखने योग्य है कि यह भिन्नता शब्दों को लेकर है। तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है। तात्त्विक अन्तर न होकर वर्णनात्मक स्थलों से शब्दों का और उनके क्रम का अन्तर दृष्टिगोचर होता है। ऐसे स्थलों पर हमने टीकाकारसम्मत पाठ को मूल में स्थान दिया है। प्रस्तुत आगम के अनुवाद और विवेचन में भी मुख्य आधार आचार्य श्री मलयगिरि की वृत्ति ही रही है। हमने अधिक से अधिक यह प्रयास किया है कि इस तात्त्विक आगम की सैद्धान्तिक विषय-वस्तु को अधिक से अधिक स्पष्ट रूप में जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाय। अतएव वृत्ति में स्पष्ट की गई प्रायः सभी मुख्य बातें हमने विवेचन में दे दी हैं ताकि संस्कृत भाषा को न समझने वाले जिज्ञासुजन भी उनसे लाभान्वित हो सकें। मैं समझता हूं कि इस प्रयास से हिन्दी भाषी जिज्ञासुओं को वे सब तात्त्विक बातें समझने को मिल सकेंगी जो वृत्ति में संस्कृत भाषा में समझाई गई हैं। इस दृष्टि से इस संस्करण की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है। जिज्ञासु जन यदि इससे लाभान्वित होंगे तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समशृंगा। अन्त में, मैं स्वयं को धन्य मानता हूं कि मुझे इस संस्करण को तैयार करने का सु-अवसर मिला। आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर की ओर से मुझे प्रस्तुत जीवाभिगम सूत्र का सम्पादन करने का दायित्व सौंपा गया। सूत्र की गंभीरता को देखते हुए मुझे अपनी योग्यता के विषय में संकोच अवश्य पैदा हुआ परन्तु श्रुतभक्ति से प्रेरित होकर मैंने यह दायित्व स्वीकार कर लिया और उसके निष्पादन में निष्ठा के साथ जुट गया। जैसा भी मुझ से बन पड़ा, वह इस रूप में पाठकों के सन्मुख प्रस्तुत है। कृतज्ञता-ज्ञापन श्रुत-सेवा के मेरे इस प्रयास में श्रद्धेय गुरुवर्य श्री पुष्करमुनिजी म. एवं श्रमणसंघ के उपाचार्य साहित्यमनीषी सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री देवेन्दमुनिजी म. का मार्गदर्शन एवं दिशानिर्देश प्राप्त हुआ है, जिसके फलस्वरूप मैं यह भागीरथ-कार्य सम्पन्न करने में सफल हो सका हूं। इन पूज्य गुरुवर्यों का जितना आभार मानूं उतना कम ही है। श्रद्धेय उपाचार्य श्री ने तो इस आगम की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखने की महती अनुकम्पा की है। इससे इस संस्करण की उपयोगिता में चार चांद लग गये हैं। प्रस्तुत आगम का सम्पादन करते समय मुझे जैन समाज के विश्रुत विद्वान् पं. श्री बसन्तीलालजी नलवाया रतलाम का महत्त्वपूर्ण सहयोग मिला। उनके विद्वत्तापूर्ण एवं श्रमनिष्ठ सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त करना मैं नहीं भूल सकता । सेठ देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत का मुख्य रूप से आभारी हूं। जिसके द्वारा प्रकाशित संस्करण का उपयोग इसमें किया गया है। आगम प्रकाशन समिति ब्यावर एवं अन्य सब प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष - [९]

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