Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ प्रस्तुत आगम अनुत्तरोपपातिक का सम्पादन और अनुवाद विदुषी महासती श्री मुक्तिप्रभाजी म०, एम. ए., पी-एच. डी. ने अत्यन्त परिश्रम के साथ किया है / महासतीजी परमपूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यसम्राट् श्री आनन्दऋषिजी महाराज की शिष्या हैं, उत्कट विद्याव्यसनी हैं / अन्तकृद्दशांग का अनुवाद भी आपकी ही धर्म-संयम-सहचरी महासती श्री दिव्यप्रभाजी ने किया है। अतिशय हर्ष का विषय है कि हमारे संघ में साध्वीसमुदाय में नूतन विकसित प्रतिभा का निर्माण हो रहा है। साध्वियों के द्वारा आगम-अनुवाद-सम्पादन का कार्य कुछ समय से ही प्रारम्भ हुआ है। श्रमणीविद्यापीठ घाटकोपर (बम्बई) की कतिपय महासतियों ने गुजराती भाषा में प्रागमों का अनुवाद किया और वह प्रकाशित भी हुआ है। हिन्दी भाषा में, जहाँ तक हमारी जानकारी है, यह प्रयास सर्वप्रथम है / हमारे लिए यह भी गौरव का विषय है कि गुजराती और हिन्दी में महासतियों ने जो स्वागतयोग्य आगम-सेवा की है, वह इस ग्रन्थमाला के सम्पादक पण्डित श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल को ही देख-रेख में हुई है / महासतियों को इस आगमिक क्षेत्र में लाने की पण्डितजी की सूझ अभिनन्दनीय है। प्रस्तुत आगम की विस्तृत प्रस्तावना सम्पादकमण्डल के अन्यतम सदस्य विख्यात विद्वान् एवं साहित्यकार श्री देवेन्द्रमुनिजी शास्त्री ने लिख कर इस संस्करण को महत्त्व प्रदान किया है। इस अमूल्य सहयोग के लिए हम मुनिश्री के प्रति प्रणत है / / ___ आगमसेवा के इस परम पुनीत अनुष्ठान में हम अपने सहयोगियों को विस्मरण नहीं कर सकते, जिनके मूल्यवान् सहयोग से ही यह सम्पन्न हो रहा है। श्रावकवर्य पद्मश्री सेठ मोहनमलजी चोरडिया, सेठ कंवरलालजी बैताला, श्री मूलचन्दजी सुराणा, श्री दौलतरामजी पारख, श्रीरतनचन्दजी मोदी का हार्दिक सहयोग विभिन्न रूपों में हमें प्राप्त है। समिति के कार्यालय का संचालन श्रीसुजानमलजी सेठिया आत्मीयता की भावना के साथ कर शोभाचन्द्रजी भारिल्ल तो इस योजना के महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं। हम इन सभी के प्रति आभारी हैं। ___ श्रमणसंघ के युवाचार्य सर्वतोभद्र विद्वद्वरिष्ठ श्रीमधुकरमुनिजी के प्रति किन शब्दों में आभार प्रकट किया जाए जिनकी शासनप्रभावना की उत्कट भावना, उद्दाम आगमभक्ति, धर्मज्ञान के प्रचारप्रसार की तीव्र उत्कंठा और अप्रतिम साहित्यानुराग की बदौलत ही हमें सेवा का यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। अन्त में गहरे दु:ख के साथ हमें यह उल्लेख करना पड़ रहा है कि अब तक प्रस्तुत प्रकाशकीय वक्तव्य जिनकी ओर से लिखा जाता था, जो आगमप्रकाशनसमिति के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में समिति के प्रमुख संचालक और व्यवस्थापक थे-कर्णधार थे, वे सेठ पुखराजजी शोशोदिया अब हमारे बीच नहीं रहे। आपके आकस्मिक निधन से न केवल समिति की किन्तु समग्र समाज की अपूरणीय क्षति हुई है / हार्दिक कामना है कि स्वर्गस्थ महान् आत्मा को अखंड शान्ति लाभ हो / शुभम् / जतनराज महता / / चांदमल विनायकिया महामन्त्री मन्त्री श्रीनागमप्रकाशनसमिति, ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 134