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सिवाय सब फूलोंके पच्चखाण. ( १० आभरणविहं-कानके एक वडे कुंडल और हाथकी वीटीके सिवाय जेवरके पचखाणः (११) धुपविहं-अगर, तुरुक, धूप · वृक्षकी छाल और शिलाजीत वगैराको छोड कर धूपके पचखाण. (१२) पेझविहं-मूंग और चावलकी रावको छोड कर पेय वस्तु के पचखाण. (१३) भरवणविहं-खांड भरे हुए घेवर और खांजोंको छोड कर पकवानके पञ्चखाण. (१४) उदंणविह -कलमशालि (एक प्रकारका धान्य) को छोड कर लासा धानके पचखाण. (१५) भूपविहं-मूंग और उडदकी दालको छोड कर दाल के पच्चखाण. (१६) कृतविहं-शरदऋतुमें इकठे किये हुए गायके घीको छोड कर घीके पञ्चखाण.(१७) साकविहं-चवटेकी फली, अमृतफली, पैांच्या, रायटोडी, मंडकीको छोड लीलोत्तरीके पच्चखाण. (१८) माहुरविहं-मधुर सालण और मधुर पालकको छोड कर और माहुरके पच्चखाण. (१९) जमणविहं-घोलण आदि, मूंग आदि दालके वों व पुढेको छोड कर बाकी के पच्चखाण. (२०) पाणीविहं-आकांशसे पडे हुए पानीको छोड कर बाकीके पच्च'खाणः (२१) मुखवासविहं-इलायची, लौंग, कपूर, कंकोल और
जायफल इन पांच सुगन्ध सहित पान (काथा चूना मिला हुआ) को छोड़ कर वाकीके पच्चखाण.*
. आठवां व्रतः . . .. ... धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में से एक भी काम न, हो तो भी जो दंड मिले उसे अनर्थ दंड कहते हैं। वह चार '
_*.उध्वीस बोलकी धारणा कहीं जाती है। उनसे २१ . सूत्र में मिलती हैं। पांच नहीं मिलती । सो पांच प्रतिकमणकी पुस्तके . .. देख लेना चाहिए. (२२) वाहनविहः (२३) वाहनिविह..(२४) " .. सयणविहं. (२५) सचितविह. (२६) द्न्य विह. .