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१३० वाले दंड कैसे देगा ? और इन सब बातेको मत्यक्ष देखना भी
झूठ है क्या ?। इससे सहालपुत्रको ज्ञान हुआ। वह "श्रमए पानकों नमस्कार कर वोला-"मैं कहता हूं कि
आप.स.जो धर्म सुना वोही उत्तम है"। ___ इस के बाद श्रमण भगवानने परिपके वीचमें वही .., भारी धर्मदेशना दी। उसे सुन हर्ष संतोप पा कर आनंद
श्रावककी नाति बारह व्रत अंगीकार कर, भगवानको वंदनानमस्कार कर पोलासपुर नगर के बीचोंबीच होकर घर आया। अपनी स्त्री अग्निमित्राको भी भगवानको वंदना करने जानेकी आज्ञा दी।
स्वामीकी आज्ञाको मान कर अग्निमित्रा स्नान कर मूल्यवान वस्त्राभूषण पहन कर अठारह देशकी दासीयोंको साथ ले कर रथमें बैठे भगवानको वन्दना करने गई । वहां पर न तो भगवानसे बहुत दूर खडी रही, न बहुत पास ही । फिर वन्दना कर धर्मकथा सुन हर्प संतोप पाई। श्रावकके बारह व्रत अंगीकार किये । रथपर बैठ कर जीधर हो कर आईथी उधरसे ही घर पहुंच गई । इसके बाद एक समय महावीर स्वामी सहस्रांच वनसे निकल कर जनपद, देश, नगर, और गामको विहार करने लगे। __ मंखलीपुत्र गोशालेने, सदालपुत्रके, महावीरके पास वारह व्रत अंगीकार करने की बात सुनी। सोचा कि मैं सदालपुत्र के पास जाउं और उसे पीछा मेरा धर्म अंगीकार कराउं।
यों विचार कर संब समुदायको लेकर पोलासपुर आया और 'अपने स्थानको उतरा। वहांपर वस्त्र तथा पात्रादि उपकरणों
को रखकर जहां सद्दालपुत्र था वहां आया। गोशालाको आता