________________
१२८
I
देवानुप्रिय श्रावक ! यहां पर कल प्रातःकालमें एक महापुरुष आवेंगे । वे ज्ञान और दर्शनके धरनेवाले, त्रिकालज्ञ, अरिहंत केवली, सर्वदर्शी, त्रिलोकवासी देव- मनुष्य - असुरादिकको पूजनीक और सर्ववन्ध हैं । तू उनकी त्रिकरण योगसे सेवा करना । उनको पाढीआर, पीढ, फलग, शैय्या, संथारा तथा वस्त्र और पात्र करके निमंत्रण करना" । इस प्रकार तीन बार कहके देवता जिस दिशा से आया था उस दिशा से वापस गया।
दूसरे दिन प्रातःकाल भ्रमण भगवान महावीर चरम तीर्थकर पधारे | उन्हें चन्दना करनेको बारह परिषद् गई । वन्दना पर्युपासना की । इस वातको सुनकर सहालपुत्रने मनमें सोचा कि, गोसालक तो आया नहीं है और ये तो श्रमण भगवान श्री महावीर विचर रहे हैं । इस लिये मैं अभी जाउं । देवने कहा था सो उन्हें जा कर वन्दना करूं, सेवा करूं । यों सोच, शुद्ध हो, सुंदर वस्त्र पहन, बहुत मनुष्य के समुदाय से निकला और पोलासपुर के बीचोंबीच होकर सहस्रांबवन बाग में जहां महावीर स्वामी विराजमान थे गया । उन्हें वन्दना कर पर्युपासना की । भगवान ने सद्दालपुत्र और दारह परिषद् के साम्हने धर्मकथा कही । फिर सहालपुत्र से कहाः " हे सवालपुत्र ! कल पिछले पहर में अशोक वाडीमें खडे रह कर एक देवने तुझसे कहा कि, 'कल एक महापुरुष आयगा उसकी सेवा भक्ति करना' यह बात सच है ?" सद्दालपुत्र बोला:- "हे स्वामिन् सच है । " फिर देवके कहने मुजब सहालपुत्रने महावीर स्वामीको वन्दना कर कहा “है भगवन् ! पोलासपुर नगरकी बाहर मेरी पांचसौ कुम्हारकी दुकानें हैं। वहां पर आप पाढीआर,
-