Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( १३१ ) .
देख सालपुत्र ने उसे मान नहीं दिया, नमस्कार नहीं किया, सामने देखा भी नहीं और बोला. श्री
गोशालाने आदरसत्कार न हुआ देख करे वाढ, ग, शय्या, संथारा और औषध मिलने की लालच से श्रमण भगवान महावीर के गुण गाता हुआ कहा :- " अहो सद्दालपुत्र श्रावक ! यहां पहले एक महात्मा आये थे ? " । सद्दालपुत्रने कहा - " महामाहण: ( किसी जीवको न मारो ऐसा उपदेश करनेवाले पुरुष ) श्रमण भगवान महावीर पधारे थे । उनको ' महामाहण' कहने का सवध क्या है ? ।” गोशाला बोला- “वे उपनेज्ञान, दर्शन, और चारित्र के धनी हैं। चोट इन्द्रों के पूजनिक हैं । और वन्दनीय हैं। महागोप, महा सार्थवाह, महा धर्मकथा के कहने वाले और महानिर्यामिक ऐसे श्रमण भगवान महावीर हैं । " सद्दालपुत्रने पूछा - " यह किस तरह ? " गोशाला ने कहा - " अहो देवानुप्रिय ! संसार रूप जंगलमें दुःख पाते हुए जीवांकी रक्षा करते हैं वास्ते महागोप हैं। हिंसक जीवेसि भय पाये हुए जीवांको इधर उधर भटकने देकर संसाररूपी वनमें मार्गभ्रष्ट नहीं होने देते, इस लिये महा सार्थवाह हैं । संसारमें चार गतिमें भ्रमण करनेवाले सव जीव सुन सके ऐसी धर्मकथा करते हैं, इस लिये महा धर्मकथा के कहनेवाले हैं । संसारमें बूते हुए जीवको धर्मरूपी नौकामें बिठा कर पार उतारने वाले ह, अतः एव महा नियमिक हैं। " सद्दालपुत्र यह सुन कर बोलने लगा - " मेरे धर्माचार्य ऐसे विज्ञानवंत और समर्थ ही हैं तो तुम उनके साथ वादविवाद मत करना" । गोशालाने कहा - "अहो
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१ पाटीया (Board, Tablet, ) * नियमक - नोका चलाने वाले.
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