Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 42
________________ (११८) मारुंगा। पांच शूला कर कढाइमें तल उसका लोही और मांस तेरे शरीरपर छीटूंगा ! जिससे तू तीव्र वेदना भोगकर आतंध्यान और रौद्रध्यानसे मरेगा"। ऐसा कहने पर श्रावक नतोडरा और नधर्मसे चलित हुआ।देवताने दोबारतीनचार कहा, परन्तु श्रावक तो डरे ही नहीं। इससे देवने कुपित होकर श्रावकके बडे लडकेको पकड लाने बाद उसीके सामने मार डाला । उसके पांच शुले किये, कहाइमें तला और उसका रक्त मांस श्रावकके अंगपर छींटा। इससे उसे बड़ी भारी वेदना हुई, परन्तु डरा नहीं, न दुःखी हुआ, न बोला मत्युत धर्मध्यानमें विशेष निमग्न हो गया। अतः एव देवनाने विचले और छोटे पुत्रका भी यह ही हाल किया और उनके लोही मांस भी वैसे ही श्रावकपर छींटा; तथापि श्रावक न तो डरा और नहीं धर्मसे चलित हुआ। चोथी दफा देवने कहा कि,-" अहो मुरादेव श्रारक ! यदि तू इस व्रतको न छोटेगा तो तेरे शरीरमें १ श्वास २ कांसं ३ दाह ४ ज्वर ५ कुक्षी ६ शूल ७ भगंदर ८ अर्श ९ अंजीर्ण १० दृष्टिदुःख ११ गुह्यशूल १२ कर्णशूल १३ उदरवेदना १४ लिंगल १५ मस्तकशूल १६ कोह यह सोलह रोग प्रगट करदूंगा । अतःएव तू महा वेदना भोग कर अकाल मोतसे मरेगा। इस प्रकार उसने एकवार, दुबारा, तिवारा कहा । इस पर मुरादेव श्रावकने मनमें सोचा कि-'यह पुरुष महा अनार्य मतिका धनी है । इसने मेरे तीन बच्चाको लाकर मेरे साम्हने मारा और उनके लोही मांससे मेरे शरीरको छीट दिया। इतनेसे बस न कर मेरे शरीरमें सोलह रोग प्रकट करनेको कहता है, यह ठीक नहीं है। इस दुष्टको

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