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नहीं कर सकता, और तभी देवकोप इसको कुछ असर नहीं कर सकता अर्थात् इसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता ।
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पौषध व्रत जो है यह ' धर्मध्यान ' का एक उत्तम प्रकार है । आत्माको पोपण करनेके लिये लिया हुआ समय यह पपध व्रत है। इस व्रत में शरीरको शृंगारना छोड दिया जाता है और शरीरकी कुछ परवाह भी नहीं रक्खी जाती । जीन्दगी भरमें जो मन दिन रात शरीर के विचारमें मग्न रहता है, उसे इस व्रत में - शरीर के बजाय शरीरके राजाके ही विचारों में लगाया जाता है । इस पापघ व्रतमें रामायण आदि रासको पढना, या सुनना, यही आत्मकल्याणका विरोधी समझा जाय तो फिर रोजगार, घर के काम और इधर उधरकी गप्प मारनेवाले के पापघके लिये तो क्यादी कहा जाय ?
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वैद्य लोग कहते हैं कि, आरोग्यतावाले मनुष्य को भी हर महिने या हर आठवें दिन आरोग्यता रक्षणके लिये एक अच्छा जुलाब लेना चाहिये । शरीरकी सहीसलामती और आरोग्य रक्षण करने के वास्ते यह इच्छने योग्य है । तथापि हर महिने या हर आठवें दिन एक 'पौषध' होता हो तो मनुष्य स्थूल और सूक्ष्म यह उभय प्रकारके महान् लाभ प्राप्त कर सके। पौषधमें उपवास करनाही पडता है, अतः एवं शरीरमें संचित हुआ सारा मल जल जाता है और शरीर निर्मल हो जाता है (यह मेरा कहना तनदुरस्त मनुष्योंके लिये है, न कि विमार और कमजोरों के। ) और आठ दिन या महिनेभर में इधर उधर भटक गये हुए विचार एकांत सेवनसे एकत्र होकर मनोबल बढता है ।