Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ ... . (१०५) क्रुद्ध हुआ और कामदेवकी पीठपर सर सर चढ गया। गलेमै तीन आंटियां दी। और तीक्षण तथा विप भरित दादोंसे काम देवके हृदयपे दंश दिया। इससे कामदेवके सारे शरीरमें वेद । हुई, तो भी वे धर्मसे चलायमान नहीं हुए। और वेदनाका शुद्ध परिणामसे सहन करीं। ___ इस प्रकारके भयंकर और उग्र परिसहाँसे जब कामदेव न डिगा तब वह देव निराश हो गया। उसने सर्पके रुपको त्याग दिया । और एक प्रधान देवताके रुपको धारण किया। पचरंगे वस्त्र पहरे, गलेमें हार डाल लिया, कानों में कुंडल सजे, मस्तकपर मुकुट धारण किया। चूंघरसे धमकार करता दसों दिशाओंको उद्योत करता हुआ आया और अन्तरीक्षमें-अधर रहकर कामदेव प्रत्ये कहने लगाः । "अहो कामदेव ! धन्य है आपको! आप पुण्यवान्, कीर्तिवान् और सदाचरणी हो । हे देवताओंको मिय ! एक दिन शक्रेन्द्रने चौरासी हजार सामानिक देव और देवियों के परिवारमें सिंहासनारुढ हुए कहा था कि.. 'आजके समयमें जंबुद्वीपके भरतक्षेत्रकी चंपानगरीमें कामदेव श्रावक पौषधशालामें पापध करके बैठे हैं। उन्हें उन्होंके व्रतसे विचलित करनेको कोई देव, दानव, असुरकुमार, गंधर्व, राक्षस, किन्नर, किंपुरुषादि समर्थ नहीं है। मुझे. शक्रेन्द्र के इस वचनपर विश्वास न हो सका। इस लिये मैं आपको विचलित करने आया था। परन्तु शक्रेन्द्रने जैसा कहा था वैसेही आप रद्ध हो यह मैंने प्रत्यक्ष देख लिया। हे देवप्रिय ! मैं आपको खमाता हूँ। मेरे अपराधकी क्षमा करें। अब मैं ऐसा न करूंगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67