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हुआ है. १२. क्रोड सुवर्णका मालक आनंद गाथापति जैसा धनाढ्य भी व्रत अंगीकार कर सेका, इससे मालूम होता है कि व्रत अंगीकार करनेमें लक्ष्मी कोइ बाधा नहीं करती है. ____ आनंद श्रावक प्रथम तो जैन धर्मसे अज्ञ था, मगर श्री महावीर प्रभु के दर्शन होने के पहले, पूर्व भवोंमें अनेक प्रकारके अनुभवोंसे वह आत्मा रुपी क्षेत्र सुधरता सुधरता 'संस्कारी' तो अवश्य हुआ था; मतलब कि वो : मार्गानुसारी' तो हुआ ही था. पिछे भगवान के सदुपदेशसे 'श्रावक' हुआ, व्रत अंगीकार किये, पिछे ११ पडिमा.. आदरी, और अखीरमें देह और आत्माका भेद बरावर अनुभवमें आनेसे संथारा कर दिया. इस तरह क्रमशः उनकी आत्मा उन्नतिक्रमकी सीढी पर चढती २ परमपदको प्राप्त हुई... ___ 'व्रत' ये कुछ खाली शब्द नहीं है। हमेश के छोट-बडे तमाम कार्योंमें आचारशुद्धि और विचारशुद्धिका पालन हो ऐसा निश्चय करना उसीका नाम 'व्रत' है. व्रतधारी ,श्रावफका दररोजका जीवन शुद्ध होता है, उनका . प्रत्येक कार्य, शब्द-विचारमें दया और यत्नाका समावेश होता है, उनका लक्ष विंदु परम पद ही है. इस लिये 'वत' पालन करने के लिये दररोज फजरमें करने योग्य भावना निचे दी गई है.
मैं निश्चय करता हूं कि:- . . . क्षेत्र may moan 'Plane ' and महा विदेह क्षेत्र, accordingly, should not be understood as 'land, but as in particular plano-condition of lifo-higher life 'Whero in stead of tho physical body the finer : bodies are working for the evolution of the soul.
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