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___ एक समय पौषधमें बैठे हुए कामदेवको विचलित करने के इरादेसे एक मिथ्याद्रष्टि देवताने अलग २ तीन रुप धारण कर उपसर्ग किये; परन्तु इस कसौटीमें कामदेव पार उतरे और उनकी सरलता बनी रही।
प्रथम तो देवताने एक महाभयंकर पिशाचका रुप बनाया। औधे किये हुए 'सूंडला' * जैसा उसका मस्तक था ॥डाभके अग्रभागसे तीन और चावल के तुशसे पीले उस पर बाल थे। पानी भरने की वडी मटकी के ढीवरे जैसा उसका लिलाट था। गिलेरीकी पूंछकीसी विकृत आंखके दोले थे और डरावने लगते थे । वकरेके नाककीसी उसकी नाक थी और भट्टीकेसे नकतोडे थे । घोडे की पूंछ जैसी उसकी मूंछ थी और वह पीली पीली और लंबी व डरावनी जान पड़ती थी। ऊंटके होठ जैसे उसके लंबे लटक रहे थे। लोह के फावडे जैसे दांत थे । लव लब करती उसकी जीभ बाहर निकल रही थी। हलके दांत जैसी ठोडी थी। घी भरनेके फूटे कुलकेसे उसके भूरे २ गाल थे। और वडे कडे थे । वडे नगरके दरवाजेके किंवाड समान उसकी छाती थी और बडी कोठी केसे उसके हाथ थे। पत्थरकी 'निसा' जैसी उसके हाथकी हथेलीयां थी और कुरांचेकीसी हाथकी उंगलीयां, सीप केसे नख थे।जहाज के हवा भरने के कपडे जैसे उसके स्तन थे। कोटकी बुरजकासा पेट था और परनाले कीसी नाभी। शिंकाकार लटकता हुआ गुह्यस्थान था और कचरेसे भरे हुए कोथले जैसा उसका अंडकोप था । अर्जुनके तृग समान उसकी पीडीयां थी
* ढोकला