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(११) ग्यारहवें व्रतके अतिचार:-(१)पाट और बिछानेको अच्छी तरह न देखना.या देखना ही नहीं. (२) पाट और बिछानेको अच्छी तरह न पूंजना या पूंजना ही नहीं. (३) लघुशंका या दीर्घशंकाकी जगहको अच्छी तरह न तलाश की हो या तलाश की ही न हो. (४) उसी जगहको अच्छी तरह साफ़ न की हो यां की ही न हो. (५) पोषधमें प्रमाद किया हो या क्रिया ही न की हो ।
(१२) बारहवें व्रतके अतिचार:-(१) सचेत वस्तु रख कर बोहरानाः (२) अचेत वस्तुसे ढंक कर सचेत वस्तु बोहराना. (३) बासी वस्तु या बिगडी हुई वस्तु बोहराना. (४) स्वयं सूझता होने पर भी दूसरेको बोहरानेको कहना. (५) दान देकर अहंकार करना. ___ अब यहांपर मरणके अंत समयमें संथारा किया जाता है उसके अतिचार बताते है. (१) इस लोकमें सुख पानेकी इच्छा करना. (२) परलोकमें देवता होने की इच्छा करना. (३) जीने की इच्छा करना. (४) अशाता होनेसे मरनेकी इच्छा करना. (५) मनुष्य और देवताके कामभोगकी इच्छा करना. इस तरह आनन्द गाथापति श्रमण भगवान महावीरके पास बारह व्रत अंगीकार कर उन्हें वन्दना नमस्कार कर कहने लगे "हे भगवन् ! आजसे मुझे अन्यतीथीके तपस्वी तथा मिथ्यावी देवतों और साधुपनको न पालें ऐसे अरिहंतके साधुआको वन्दना नमस्कार करना नहीं कल्पे, मैं उनकी न सेवाभक्ति करुंगा न उनके पास ही जाउंगा। पहले न बोलूंगा न बोलाउंगा। बिना बोलाया न बोलंगा। एकवार नबोलाऊंगा न मारवार बोलाऊंगा। उन्हें अन्न पाणी, मेवा, . मुखवास, न