Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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दायना तत्त्वार्थराजवार्तिकमां पण व्याख्याप्रज्ञप्तिनी साक्षी आपेली छे. तत्त्वार्थसूत्रगत "विजयादिषु द्विचरमाः" सूत्रना वार्तिकमा ए साक्षीवाळो उल्लेख नीचे प्रमाणे छे:-"एवं हि व्याख्याप्रज्ञप्तिदण्डकेयूक्तम्-विजयादिषु देवा मनुष्यभवमास्कन्दन्तः कियतीर्गत्यागतीः विजयादिपु कुर्वन्ति ? इति गौतमप्रश्ने भगवतोक्तम् जघन्येनैको भवः आगत्या उत्कर्षेण गत्यागतिभ्यां द्वौ भवौ."
[अनुवादः-कारण के व्याख्याप्रज्ञप्तिना दंडकोमा एम कहेलं छे के मनुष्यभवने पामता विजयादि विमानमा रहेनारा देवो विजयादि विमानोमा केटली गति भने आगति करे छे? ए प्रकारना गीतमना प्रश्नना उत्तरमां भगवान कहे छ के आगतिनी अपेक्षाए ओछामा ओछो एक भव अने गतिभागतिनी अपेक्षाए वधारेमा वधारे बे भव."]
श्वेतांबर संप्रदायमां गौतमना प्रश्न अने भगवानना उत्तरवाळु आ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ज प्रसिद्ध छे. दिगंबर संप्रदायमां ए जातर्नु व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र होय एq जाण्यु नथी. एथी उपयुक्त वार्तिकमां गौतमना प्रश्न अने भगवानना उत्तरवाळा जे व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रनी साक्षी आपेली छे ते श्वेतांबरसंप्रदायप्रसिद्ध प्रस्तुत व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र होय एम न कही शकाय? ज्या सुधी गौतमना प्रश्न अने भगवानना उत्तरवाळू व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दिगंबर संप्रदायमां जाणीतुं छे एवो निर्णय न थई शके त्यां सुधी तो राजवार्तिकमा साक्षी तरीके आपेलं ए व्याख्याप्रज्ञप्ति, आ वर्तमानसूत्र समजी शकाय एम कहेबाने कशी हरकत नथी. खरेखर आम होय तो आ उपरथी एक बीजी वात ए पण नीकळे छे के श्वेतांबरसंप्रदायसंमत सूत्रो दिगंबर संप्रदायने पण संमत हतां एटले बन्ने संप्रदायमां शास्त्रीय एकता हती.
(४) व्याख्याप्रज्ञप्तिमां (भगवतीमां) आवेलां केटलांक मतांतरो आ ग्रंथमा जे जे मतांतरो आवेलां छे तेनां कोई विशेष खास नामो मूळ ग्रंथमा आपेलां नथी. तेम ए विषे टीकाकारे पण काई खुलासो कर्यो नथी. छतां बौद्ध त्रिपिटक अने वैदिक साहित्यनुं विशेष अन्वेषण करवाथी ए बधा मतो विषे जरुरी माहिती मळवी कठण नथी.
आ सूत्रना पन्नरमा शतकमां मंखलीपुत्र गोशालकने लगती सविस्तर माहिती आपेली छे. ए माहिती अक्षरशः ऐतिहासिक छे एम कहे कठण छे. पण ते उपरथी गोशालकना संप्रदायनी थोडी घणी माहिती आपणे जाणी शकीए एम छीए. एमां गोशालकने स्वभाववादी के नियतिवादी तरीके बतावेलो छे. गोशालकनुं कथन तेमां एम जणाव्युं छे के ते, जीवोना सुखदुःख स्वाभाविक-नियत माने छे. आ सूत्रो उपरांत बीजा सूत्रोमां पण गोशालकनो मत बतावेलो छे. सूयगडांग सूत्रना पहेला श्रुतस्कंधना प्रथम अध्ययनना बीजा उद्देशकमां बीजी त्रीजी गाथामां अन्य मत बतावतां एम कहेलं छे के "केटलाके एम कहे छे के जीवोने सुखदुःख थाय छे ते स्वयंकृत नथी, अन्यकृत नथी पण ए बधु सिद्ध ज छे-खाभाविक छे."
__ आवो ज मत उपासक दशांगना सातमा अध्ययनमां आजीवकना उपासक सद्दालपुत्रे स्वीकारेलो छे. सद्दालपुत्र कहे छे के "उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषकारपराक्रम नथी. बधा भावो नियत छे” ए सद्दालपुत्र आजीवकोपासक पोताना धर्मगुरु तरीके गोशालकने स्वीकारे छे. आ रीते व्याख्याप्रज्ञप्ति, सूयगडांग अने उपासकदशांगमां गोशालकना मतविषे को फरक जणातो नथी. ए उपरथी गोशालक स्वभाववादी-नियतिवादी-हतो एम चोक्खं मालूम पडे छे.
बुद्ध पिटकोमां पण मंखली गोशालकने लगती हकीकत आवे छे तेमां कहेला तेना प्रतिपादनने वांचवाथी मालूम पडे छे के ते अहेतुवादी हतो. दीघनिकायना सामञ्ञफल सूत्रमा लखेलं छे के "प्राण भूत, जीव अने सत्त्वना सुखदुःख अहेतुक छे, बल नथी, वीर्य नथी, पुरुषकारपराक्रम नथी ए गोशालकनो मत छे." आ रीते बुद्धपिटक अने जैन सूत्रोमां गोशालकना मत तरीके उपर्युक्त हकीकतनो एक सरखो उल्लेख आवे छे अने टीकाकारे पण तेने ते ज रीते बतावेलो छे.
१'मोक्षमार्गप्रकाश'मा अर्वाचीन पंडित टोडरमालजी लखे छे के "सूत्रोमां गौतमना प्रश्न अने भगवान महावीरना उत्तरो एवी शैली घटमान नथी एथी एवी शैलीवाळी सूत्रो दिगंबर संप्रदाय संमत नथी" आ तेमनो उल्लेख दिगंबरं संप्रदायना धुरंधर आचार्य भट्टाकलंकना उपर्युक निर्देश सामे केटलो प्रामाणिक मानी शकाय?
"न तं वयंकडं दुक्खं कओ अन्नकडं च णं । सुहं वा जइ वा दुक्खं सेहियं वा असेहियं ॥
सयंकडं न अण्णेहिं वेदयंति पुढो जिया। संगइअं तं तहा तेसिं इहमेगेसि आहिय" ॥ ३ जूओ भगवान महावीरना दश उपासको-७ मो सद्दालपुत्र तथा ते परतुं टिप्पण. ४ जूओ दीघनिकाय (मराठी) पृ० ५८.
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