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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : सूत्र २६७-२७०
२६७. दोन्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं द्वयोरायुः - संवर्त्तकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - २६७. दो के आयुष्य का संवर्त्तन"" (अकाल
जहा मगुस्साणं चेव,
मनुष्याणाञ्चैव पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चैव ।
मरण) होता है -- मनुष्यों के पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के
पंचेंदियति रिक्खजोणियाणं चेव ।
खेत्त-पदं
२६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिने गं दो वासा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला अविसेस - मणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवद्धति आयाम विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा भरहे चेव, एरवए चेव । भरतं चैव, ऐरवतं चैव ।
२६६. एवमेएणमभिलावेणं
हेमवते चेव, हेरण्णवते चेव । हरिवासे चेव, रम्मयवासे चेव ।
२७०. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं दो खेत्ता पण बहुसमतुल्ला अविसेस मणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टेति आयाम - विक्खंभ- संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - godविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव ।
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क्षेत्र-पदम्
क्षेत्र - पद
जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २६८. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तरदक्षिणे द्वे वर्षे प्रज्ञप्तेदक्षिण में दो क्षेत्र हैंबहुसमतुल्ये अविशेषे अनानात्वेअन्योन्यं नातिवर्तते आयाम - विष्कम्भसंस्थान- परिणाहेन, तद्यथा
भरत-दक्षिण में, ऐरवत-उत्तर में ।
दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं । नगर-नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई विशेष ( भेद) नहीं है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें नानात्व नहीं है । वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते।
२६. इसी प्रकार हैमवत, हैरण्यवत, हरि और रम्यकक्षेत्र की स्थिति भी भरत और ऐरवत के समान है—
हैमवत हरि
} दक्षिण में ।
उत्तर में ।
एवमेतेनअभिलापेन—
हैमवतं चैव, हैरण्यवतं चैव । हरिवर्षं चैव, रम्यकवर्षं चैव ।
जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य - पाश्चात्ये द्वे क्षेत्रे प्रज्ञप्तेबहुसमतुल्ये अविशेषे अनानात्वे अन्योन्यं नातिवर्तेते आयामविष्कम्भ - संस्थान - परिणाहेन,
तद्यथा
पूर्वविदेहश्चैव, अपरविदेहश्चैव ।
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हैरण्यवत
रम्यक
२७० जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्वपश्चिम में दो क्षेत्र हैंपूर्वविदेह — पूर्व में ।
अपरविदेह — पश्चिम में ।
वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं । नगर-नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई विशेष ( भेद ) नहीं है । कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें नानात्व नहीं है। वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते ।
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