Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1046
________________ ठाणं (स्थान) १००५ स्थान २२: टि०४७ सगा ३. चुलनीपिता-यह वाराणसी [बनारस] का वासी धनाढ्य श्रावक था। एक बार यह भगवान के पास धर्म प्रवचन सुन प्रतिबुद्ध हुआ। बारह व्रत स्वीकार किए। तत्पश्चात् प्रतिमाओं का वहन किया। एक बार पूर्वरान में उसके सामने एक देव प्रकट हुआ और अपनी प्रतिज्ञाओं का त्याग करने के लिए कहा। चलनीपिता ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। तब देव ने उसकी दृढ़ता की परीक्षा करने के लिए उसके सामने उसके छोटे-बड़े पुत्रों को मार डाला। अन्त में देवता ने उसकी माता को मार डालने की धमकी दी। तब चुलनीपिता अपने व्रत से विचलित हो गया और उसको पकड़ने के लिए दौड़ा। देव आकाशमार्ग से उड़ गया। चुलनीपिता के हाथ में केवल खम्भा आया और वह जोर से चिल्ला उठा। यथार्थता का ज्ञान होने पर उसने अतिचार की आलोचना की। ४. सुरादेव-यह वाराणसी में रहने वाला श्रावक था। इसकी पत्नी का नाम धन्ना था। इसने भगवान महावीर से श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किए। एक बार वह पौषध में स्थित था। अर्द्ध रात्रि के समय एक देव प्रकट हुआ और बोला'देवानुप्रिय ! यदि तू अपने व्रतों को भंग नहीं करेगा तो मैं तेरे सभी पुत्रों को मारकर उबलते हुए तेल की कड़ाही में डाल दूंगा और एक साथ सोलह रोग उत्पन्न कर तुझे पीड़ित करूंगा।' यह सुन सुरादेव विचलित हो गया और वह उसे पकड़ने दौड़ा । देव अन्तहित हो गया। वह चिल्लाने लगा। यथार्थ ज्ञात होने पर उसने आलोचना कर शुद्धि की। ५. चुल्लशतक---यह आलंभीनगरी का वासी था। एक बार यह पौषधशाला में पौषध कर रहा था। एक देव ने उसे धर्म छोड़ने के लिए कहा। चुल्लशतक अपने धर्म में दृढ़ रहा। जब देवता उसका सारा धन अपहरण कर ले जाने लगा तब वह च्युत हुआ और उसे पकड़ने दौड़ा। अन्त में देवमाया को समझ वह आश्वस्त हुआ। वह प्रायश्चित्त ले शुद्ध हुआ। ६. कुण्डकोलिक-यह कांपिल्यपुर का वासी श्रावक था। एक बार वह मध्याह्न में अशोकवन में आया और शिलापट पर बैठ धर्मध्यान में स्थित हो गया। उस समय एक देव आया और उसे गोशालक का मत स्वीकार करने के लिए कहाकुण्डकोलिक ने इसे अस्वीकार कर डाला। वाद-विवाद हुआ। अन्त में देव पराजित होकर चला गया। कुण्डकोलिक अपने सिद्धान्त पर बहुत ही दृढ़ हुआ। ७. सद्दालपुत्त-यह पोलासपुर का निवासी कुम्भकार आजीवक मत का अनुयायी था। एक बार मध्याह्न के समय अशोकवन में धर्म्यध्यान में स्थित था। उस समय एक देव प्रगट होकर बोला-'कल यहाँ निकालज्ञाता, केवलज्ञानी और केवलदर्शनी महामानव आयेंगे। तुम उनकी भक्ति करना। दूसरे दिन भगवान महावीर वहाँ आये। वह उनके दर्शन करने गया और प्रतिबुद्ध हो उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। गोशालक को यह बात मालूम हुई। वह पुनः उसे अपने मत में लाने के लिए प्रयास करने लगा। शकडाल तनिक भी विचलित नहीं हुआ। एक बार वह प्रतिमा में स्थित था। एक देव उसकी दृढ़ता की परीक्षा करने आया और उसकी भार्या को मार डालने की बात कही। उससे डरकर वह व्रतच्युत हो गया। ८. महाशतक-यह राजगृह नगर का निवासी श्रावक था। इसके तेरह पत्नियां थीं। इसकी प्रधान पत्नी रेवती ने अपनी बारह सौतों को मार डाला। एक बार महाशतक पौषध कर रहा था। रेवती वहाँ आई और कामभोग की प्रार्थना करने लगी। महाशतक ने उसे कोई आदर नहीं दिया। एक वार वह थावक की ग्यारह प्रतिमाओं का पालन कर रहा था। उसे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। इसी बीच रेवती पुनः वहाँ आई और उसने भोग की प्रार्थना की, किन्तु वह विचलित नहीं हुआ। ६. नन्दिनीपिता--यह श्रावस्ती का निवासी धावक था। चौदह वर्ष तक श्रावक के व्रतों का पालन कर पन्द्रहवें वर्ष में वह गृहस्थी से विलग हो धर्ना-ध्यान में समय बिताने लगा। उसने बीस वर्ष पर्यन्त श्रावक-पर्याय का पालन किया। १०. लेयिकापिता-यह श्रावस्ती नगरी का निवासी था। इसने बीस वर्ष पर्यन्त श्रावक-पर्याय का पालन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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