Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1045
________________ १००४ ठाणं (स्थान) स्थान १० :टि० ४७ रखा। एक बार उसे सोलह रोग' हुए। उनकी तीव्र वेदना से मरकर वह नरक में गया। ६. सहस्रोद्दाह-प्राचीन समय में सुप्रतिष्ठ नगर में सिंहसेन नाम का राजा राज्य करता था। उसके पांच सौ रानियां थीं। वह श्यामा नाम की रानी में बहुत आसक्त था। इससे अन्य ४६६ रानियों की माताओं ने श्यामा को मार डालने का षड्यन्त्र रचा। राजा सिंहसेन को इस षड्यंत्र का पता चला। उसने अपने नगर के बाहर एक बड़ा घर बनवाया। उसमें खान-पान की सारी सुविधाएं रखी। एक दिन उसने उन ४६६ रानी-माताओं को आमन्त्रित किया और उस घर में ठहराया। जब सब आ गई तब उसने उस घर में आग लगवा दी। सब जल कर राख हो गईं। राजा मरकर नरक में गया। वहां से निकल कर वह जीव रोहितक नगर में दत्तसार्थवाह के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम देवदत्त रखा गया। पुष्पनंदी राजा के साथ उसका विवाह सम्पन्न हुआ। राजा पुष्पनंदी अपनी माता का बहुत विनीत था। वह हर समय उसकी भक्ति करता और उसी के कार्य में रत रहता था। देवदत्ता ने अपनी सास को अपने आनन्द में विघ्न समझकर उसे मार डाला। राजा को यह वृत्तान्त ज्ञात हुआ। उसने विविध प्रकार से देवदत्ता की कदर्थना कर उसे मरवा डाला। सैकड़ों व्यक्तियों को एक साथ जला देने के कारण, अथवा सहसा अग्नि लगाकर जला देने के कारण उसका नाम 'सहस्रोद्दाह' अथवा सहसोदाह है। इस कथानक की मुख्य नायिका देवदत्ता होने के कारण विपाक सूत्र में इस अध्ययन का नाम 'देवदत्ता' है। १०. कुमार लिच्छई-प्राचीन समय में इन्द्रपुर नगर में पृथिवीश्री नाम की गणिका रहती थी। वह अनेक राजकुमारों और वणिक पूत्रों को मंत्र आदि से वशीभूत कर उसके साथ भोग भोगती थी। वह मरकर छठी नरक में गई। वहां से निकल कर वह वर्द्धमान नगर के सार्थवाह धनदेव के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई। उसका नाम अंजू रखा। उसका विवाह राजा विजय के साथ हुआ। वह कुछ वर्ष जीवित रही और योनिशूल से मृत्यु को प्राप्त कर नरक में गई। इस अध्ययन का नाम 'कुमार लिच्छई। मीमांसनीय है। प्रस्तुत सूत्र में इसका नाम लिच्छवी कुमारों के आचार पर रखा गया है। विपाक सूत्र में इसका नाम 'अंजू' है। जो कथानक की मुख्य नायिका है। इन सबका विस्तृत विवरण विपाक सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध से जानना चाहिए। ४७. (सू० ११२) ___ भगवान महावीर के दस प्रमुख श्रावक थे। उनका पूरा विवरण उपासकदशा सूत्र में प्राप्त है। संक्षेप में वह इस प्रकार है १. आनन्द-यह वाणिज्यग्राम [बनियाग्राम] में रहता था। यह अतुल वैभवशाली और साधन-सम्पन्न था। भगवान महावीर से बोधि प्राप्त कर इसने बारह व्रत स्वीकार किए तदनन्तर श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं सम्पन्न की। उसे अवधिज्ञान प्राप्त हुआ। गौतम गणधर ने इस पर विश्वास नहीं किया और वे आनन्द से इस विषय में विवाद कर बैठे। भगवान् ने गौतम को आनन्द से क्षमायाचना करने के लिए भेजा। २. कामदेव-यह चम्पानगरी का वासी श्रावक था। एक देवता ने इसकी धर्म-दृढ़ता की परीक्षा करने के लिए उपसर्ग किए। यह अविचलित रहा। १. सोलह रोग ये हैं १. श्वास, २. खांसी, ३. ज्वर, ४. दाह, ५. उदरशूल, ६. भगंदर, ७. अर्श, ८. अजीर्ण, ६. अंधापन, १०. शिरःशूल, ११. अरुचि, १२, अक्षिवेदना, १३. कर्णवेदना, १४. खुजली, १५. जलोदर , १६. कोढ़। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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