________________
ठाणं (स्थान)
७२६
स्थान ७ : सूत्र ४८
णीस सिऊस सियसम, संचारसमा सरा सत्त॥ १४. सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविसती। ताणा एगणपण्णासा, समत्तं सरमंडलं॥
निःश्वसितोच्छ्वसितसमं, संचारसमा स्वराः सप्त ।। १४. सप्त स्वराः त्रयः ग्रामाः, मूर्च्छना एकविंशतिः । ताना एकोनपञ्चाशत्, समाप्तं स्वरमण्डलम् ।।
२. अर्द्धसम-जिसमें चरण या अक्षरो में से कोई एक सम हो, या तो चार चरण हों या विषम चरण होने पर भी उनमें लघुगुरु अक्षर समान हों। ३. सर्वविषम-जिसमें चरण और अक्षर सब विषम हों। भणितियां-गीत की भाषाएं दो हैं - १. संस्कृत, २. प्राकृत। ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभाषित हैं। ये स्वरमण्डल में गाई जाती हैं। मधुर गीत कौन गाती है ? परुष और रूखा गीत कौन गाती है ? चतुर गीत कौन गाती है ? विलम्ब गीत कौन गाती है ? द्रुत-शीघ्र गीत कौन गाती है ? विस्वर गीत कौन गाती है ? श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है। काली स्त्री परुष और रूखा गाती है। केशी स्त्री चतुर गीत गाती है। काणी स्त्री विलम्ब गीत गाती है। अंधी स्त्री द्रुत गीत गाती है। पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है। सप्तस्वर-सीभर की व्याख्या इस प्रकार
१. तन्त्रीसम--तन्त्री-स्वरों के साथसाथ गाया जाने वाला गीत । २. तालसम-ताल-वादन के साथ-साथ गाया जाने वाला गीत। ३. पादसम८-स्वर के अनुकूल निर्मित गेय पद के अनुसार गाया जाने वाला गीत । ४. लयसम-वीणा आदि को आहत करने पर जो लय उत्पन्न होती है, उसके अनुसार गाया जाने वाला गीत। ५. ग्रहसम-वीणा आदि के द्वारा जो स्वर पकड़े, उसी के अनुसार गाया जाने वाला गीत। ६. निःश्वसितोच्छ्वसितसम-सांस लेने और छोड़ने के क्रम का अतिक्रमण न करते हुए गाया जाने वाला गीत । ७. संचारसम-सितार आदि के साथ गाया जाने वाला गीत। इस प्रकार गीत-स्वर तन्त्री आदि से सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है। सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मुर्छनाएं हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों" से गाया जाता हैं, इसलिए उसके ४६ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वरमण्डल समाप्त होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org