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स्थान ६: सूत्र २३-२५
ठाणं (स्थान)
८५४ १२. वेरुलियमणि-कवाडा, १२. वैडूर्यमणि-कपाटाः, कणगमया विविध-रयण-पडिपुण्णा। कनकमयाः विविध-रत्न-प्रतिपूर्णाः । ससि-सूर-चक्क-लक्खण-अणुसम- शशि-सूर-चक्र-लक्षणानुसमजुग-बाहु-वयणा य॥ युग-बाहु-वदनाश्च ॥
१३. पलिओवमद्वितीया, १३. पल्योपमस्थितिकाः, णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा। निधिसदृग्नामानश्च तेषु खलु देवाः। जेसि ते आवासा,
येषां ते आवासाः, अक्किज्जा आहिवच्चा वा। अक्रेयाः आधिपत्याः वा।। १४. एए ते गवणि हिणो, १४. एते ते नव निधयः, पभूतधणरयणसंचयसमिद्धा। प्रभूतधनरत्नसंचयसमृद्धाः । जे वसमुवगच्छंती,
ये वशमुपगच्छन्ति, सव्वेसि चक्कवट्टीणं॥ सर्वेषां चक्रवर्तिनाम् ॥
उन निधियों के कपाट वैडूर्य-रत्नमय और सुवर्णमय होते हैं। उनमें विविध रत्न जड़े हुए होते हैं। उन पर चन्द्र, सूर्य और चक्र के आकार के चिह्न होते हैं। वे सभी समान होते हैं और उनके दरवाजे के मुखभाग में खम्भे के समान वृत्त और लम्बी द्वार-शाखाएं होती हैं। वे सभी निधि एक पल्योपम की स्थितिवाले होते हैं। जो-जो निधियों के नाम हैं उन्हीं नामों के देव उनमें आवास करते हैं। उनका क्रय-विक्रय नहीं होता और उन पर सदा देवों का आधिपत्य रहता है। वे नौ निधि प्रभूत धन और रत्नों के संचय से समृद्धि होते हैं और वे समस्त चक्रवतियों के वश में रहते हैं।
विगति-पदं विकृति-पदम्
विकृति-पद २३. णब विगतीओ पण्णत्ताओ, तं नव विकृतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २३. विकृतियां नौ हैं
जहाखीरं, दधि, णवणीतं, सप्पि, तेलं, क्षीरं, दधि, नवनीतं, सपिः, तैलं, १. दूध, २. दही, ३. नवनीत,
४. घृत, ५. तैल, ६. गुड़, गुलो, महुं, मज्ज, मंसं। गुडः, मधु, मद्य, मांसम् ।
७. मधु, ८. मद्य, ६. मांस । बोंदी-पदं बोंदी-पदम्
बोंदी-पद २४. णव-सोत-परिस्सवा बोंदी पण्णत्ता, नव-स्रोत:-परिश्रवा बोन्दी प्रज्ञप्ता, २४. शरीर में नौ स्रोत झर रहे हैं.... तं जहा
तद्यथादो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, द्वे थोत्रे, द्वे नेत्रे, द्वे घ्राणे, मखं, उपस्थं, दो कान, दो नेत्र, दो नाक, मुंह, उपस्थ मुह, पोसए, पाऊ। पायुः ।
और अपान।
पुण्ण-पदं
पुण्य-पदम् २५. णवविधे पुण्णे पण्णत्ते, तं जहा- नवविधं पुण्यं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा
अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, अन्नपुण्यं, पानपुण्यं, वस्त्रपुण्यं, लेणपुग्ण, सयणपुण्णे, मणपुण्णे, लयनपुण्यं, शयनपुण्यं, मनःपुण्यं, वइपुण्णे, कायपुण्णे, वाक्पुण्यं,
कायपुण्यं, णमोक्कारपुण्णे।
नमस्कारपुण्यम् ।
पुण्य-पद २५. पुण्य के नौ प्रकार हैं
१. अन्नपुण्य, २. पानपुण्य, ३. वस्त्रपुण्य, ४. लयनपुण्य, ५. शयनपुण्य, ६. मनपुण्य, ७. वचनपुण्य, ८. कायपुण्य, ६. नमस्कारपुण्य ।
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