Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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स्थान ६ : सूत्र ६२
ठाणं (स्थान)
८६६ 'इहलोगभए, परलोगभए, इयलोकभयं, परलोकभयं, आदानभयं, आदाणभए, अकम्हाभए, अकस्मात्भयं, वेदनाभयं, मरणभयं, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए। अश्लोकभयम् । एवामेव महापउमेवि अरहा सम- एवमेव महापद्मोऽपि अर्हन् श्रमणानां णाणं णिग्गंथाणं सत्त भयढाणे निर्ग्रन्थानां सप्त भयस्थानानि प्रज्ञापपण्णवेहिति, तं जहा- यिष्यति, तद्यथाइहलोगभयं, परलोगभयं, इहलोकभयं, परलोकभयं, आदानभयं, आदाणभयं, अकम्हाभयं, अकस्मात्भयं, वेदनाभयं, मरणभयं, वेयणभयं, मरणभयं, अश्लोकभयम्। असिलोगभयं । एवं अट्ट मयटाणे, णव बंभचेर- एवं अष्ट मदस्थानानि, नव गुत्तीओ, दसविधे समणधम्मे, ब्रह्मचर्यगुप्तयः, दशविधः श्रमणधर्मः, एवं जाव तेत्तीसमासातणाउत्ति। एवम् यावत् त्रयस्त्रिंशदासातनाइति । से जहाणामए अज्जो ! मए सम- अथ यथानामकं आर्य ! मया श्रमणानां णाणं णिग्गंथाणं णग्गभावे मुंड- निर्ग्रन्थानां नग्नभावः मुण्डभावः भावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अस्नानक
अदन्तधावनक अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलग- अछत्रकं अनुपानत्कं भूमिशय्या फलकसेज्जा कटुसेज्जा केसलोए बंभचेर- शय्या काष्ठशय्या केशलोच: ब्रह्मचर्यवासे परघरपवेसे लद्धावलद्ध- वासः परगृहप्रवेश: लब्धापलब्धवृत्तयः वित्तीओ पण्णत्ताओ। प्रज्ञप्ताः । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं एवमेव महापद्मोऽपि अर्हन् श्रमणानां णिग्गंथाणं णग्गभावं 'मंडभावं निर्ग्रन्थानां नग्नभावं मूण्डभावं अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अस्नानकं अदन्तधावनकं अछत्रकं अणुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं अनुपानत्कं भूमिशय्यां फलकशय्यां कट्टसेज्ज केसलोयं बंभचेरवासं काष्ठशय्यां केशलोचं ब्रह्मचर्यवासं परघरपवेसं लद्धावलद्ध वित्ती परगृहप्रवेशं लब्धापलब्धवृत्ती: पण्णवेहिती।
प्रज्ञापयिष्यति ।
मरणभय और अश्लोकभय-का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी सात भय-स्थानों-इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्मात्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय--का निरूपण करेंगे। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आठ मदस्थानों, नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियों, दश श्रमणधर्मों यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्य भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आठ मदस्थानों, नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियों, दशश्रमणधर्मों यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण करेंगे। आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान का निषेध, दतौन का निषेध, छत्र का निषेध, जूतों का निषेध, भूमिशय्या, फलकशय्या, काठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास, परघरप्रवेश और लब्धापलब्ध वृत्ति का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, स्थान का निषेध, दतौन का निषेध, छत्र का निषेध, जूतों का निषेध, भूमिशय्या, फलकशय्या, काष्ठशय्या", केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास, परधरप्रवेश और लब्धापलब्धवृत्ति का निरूपण करेंगे।
से जहाणामए अज्जो! मए सम- अथ यथानामकं आर्य ! मया श्रमणानां णाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति निर्ग्रन्थानां आधार्मिकमिति वा वा उद्देसिएति वा मीसज्जाएति औद्देशिकमिति वा मिश्रजातमिति वा वा अज्झोयरएति वा पूतिए कोते अध्यवतरकमिति वा पूतिकं क्रीतं पामिच्चे अच्छेज्जे अणिस? प्रामित्यं आच्छेद्यं अनिसृष्ट अभिहृत- अभिहडेति वा कतारमत्तेति वा मिति वा कान्तारभक्तमिति वा
आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आधार्मिक", औद्देशिक", मिश्रजात", अध्यवतर", पूतिकर्म, क्रीत", प्रामित्य आच्छेद्य", अनिसृष्ट", अभ्याहृत", कान्तारभक्त, दुभिक्षभक्त", ग्लानभक्त", वार्दलिकाभक्त", प्राघूर्णभक्त,
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