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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : टि० ११६-१२१
जैसे-मोम का गोला सूर्य के ताप से पिघल जाता है, वैसे ही उन चारों में से एक व्यक्ति ऐसी आलोचना सुन धर्म से विरक्त हो गया।
शेष तीन व्यक्ति आलोचना करने वालों को उत्तर देकर अपने-अपने घर चले गए। घर में माता-पिता के सम्मुख धर्म की चची की तो उन्होंने कठोर शब्दों में अपने पुत्रों को उपालंभ दिया और कहा-अपनी-अपनी स्त्री को लेकर हमारे घर से चले जाओ! तीनों में से एक घबरा गया। अपनी माता से कहा-तू मेरे जन्म की दाता है, तुझे छोड़ मैं साधूओं के पास नहीं जाऊंगा। सूर्य के ताप से न पिघलने वाला लाख का गोला अग्नि के ताप से पिघल गया।
शेष दो व्यक्ति अपने माता-पिता के पास दृढ रहे, घबराए नहीं। फिर दोनों अपनी-अपनी पत्नी के पास गए। पत्नी उनकी बात सुन बौखला उठी। डराते हुए पति को कहा-लो, संभालो अपने बच्चे और यह लो अपना घर। मैं तो कुएं में गिरकर मर जाऊंगी। मुझ से ये बच्चे नहीं संभाले जाते। पत्नी के ये शब्द सुन दो में से एक घबरा गया और सोचा-- अगर यह मर जाएगी तो सगे-संबंधियों में अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए नारी से घबराकर धर्म से विरक्त हो गया। वह उठना-बैठना आदि सारा कार्य स्त्री के आदेश से करने लगा। सूर्य और अग्नि के ताप से न पिघलने वाला काष्ठ का गोला अग्नि में जलकर राख हो गया।
मैं जहर खाकर मर जाऊंगी, फिर देखेंगी तुम आनंद से कैसे रहोगे'----स्त्री के द्वारा ऐसा डराने पर भी चौथा व्यक्ति डरा नहीं। वह अपने विचार में दृढ़ रहा और उसे करारा जवाब देता गया। मिट्टी का गोला अग्नि में ज्यों-ज्यों तपता है त्यों-त्यों लाल होता जाता है।
११६ (सू० ५४६)
लोहे का गोला गुरु, त्रपु का गोला गुरुतर, ताम्बे का गोला गुरुतम और सीसे का गोला अत्यन्त गुरु होता है। इसी प्रकार संवेदना, संस्कार या कर्म के भार की दृष्टि से कुछ पुरुष गुरु, कुछ पुरुष गुरुतर, कुछ पुरुष गुरुतम और कुछ पुरुष अत्यन्त गुरु होते हैं।
स्नेह भार की दृष्टि से भी इसकी व्याख्या की जा सकती है। पिता के प्रति स्नेहभार गुरु, माता के प्रति गुरुतर, पुत्र के प्रति गुरुतम और पत्नी के प्रति अत्यन्त गुरु होता है।'
१२० (५४७)
प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या गुण या मूल्य की दृष्टि से की जा सकती है। चांदी का गोला अल्प गुण या अल्प मूल्यवाला होता है। सोने का गोला अधिक गुण या अधिक मूल्यवाला होता है। रत्न का गोला अधिकतर गुण या अधिकतर मूल्यवाला होता है । वज्ररत्न (हीरे) का गोला अधिकतम गुण या अधिकतम मूल्यवाला होता है। इसी प्रकार समृद्धि, गुण या जीवनमूल्यों की दृष्टि से पुरुषों में भी तरतमता होती है।
जिस मनुष्य की बुद्धि निर्मल होती है, वह चांदी के गोले के समान होता है। जिस मनुष्य में बुद्धि और आचार दोनों की चमक होती है, वह सोने के गोले के समान होता है। जिस मनुष्य में बुद्धि, आचार और पराक्रम तीनों होते हैं वह रत्न के गोले के समान होता है। जिस मनुष्य में बुद्धि, आचार, पराक्रम और सहानुभूति चारों होते हैं, वह वज्ररत्न के गोले के समान होता है।
१२१ (सू० ५४८)
असिपत्र की धार तेज होती है। वह छेद्य वस्तु को तुरंत छेद डालता है। जो पुरुष स्नेह-पाश को तुरंत छेद डालता है, उसकी तुलना असिपत्र से की गई है। जैसे धन्य ने अपनी पत्नी के एक वचन से प्रेरित हो तुरंत स्नेह-बंध छेद डाला।
१. स्थानांगतात्त, पत्र २५६ । २. देखें स्थानांग, १०१५
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