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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : टि०६-१५
पुन: पानी में गिर पड़ा। संत ने फिर उठाया और उसने फिर डंक मार दिया। वह पानी में गिरता रहा और संत अपना काम करते रहे। बाहर खड़े लोग कुछ देर देखते रहे। उनमें से किसी एक से रहा नहीं गया। उसने कहा—'क्या आप इसके स्वभाव से अपरिचित हैं, जो इसके साथ भलाई कर रहे हैं ?' .
___ संत ने अपना सहज स्मित हास्य बिखेरते हुए कहा-'मैं जानता हूं इसे, इसके स्वभाव को और अपने स्वभाव को भी। जब यह अपना दुष्ट स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो मैं कैसे अपने शिष्ट स्वभाव को छोड़ दूं। जिसे अपना सहज दर्शन नहीं है उसके लिए ही यह सब झंझट जैसा है।' संन्यासी के पास ऐश्वर्य नहीं था, किन्तु उनकी दृष्टि उन्नत थी।
ऐश्वर्य से उन्नत और शीलाचार से उन्नत मगध के सम्राट् श्रेणिक की रानी का नाम चेलना था। चेलना रूप-सम्पन्न और शील-सम्पन्न थी। सर्दी के दिनों की घटना थी। रानी सोई हुई थी। उसका हाथ बाहर रह जाने से ठिठुर गया था। जैसे ही उसकी नींद टूटी तो उसके मुंह से निकल गया था कि 'उसका क्या होता होगा?' श्रेणिक का मन उसके सतीत्व में संदिग्ध बन गया।
वह भगवान् को अभिवंदन करने चला। मार्ग में अभयकुमार मिला। आदेश दिया-'चेलना का महल जला दिया जाए।' अभयकुमार कुछ समझ नहीं सका। 'इतस्तटी इतो व्याघ्रः' (इधर नदी और इधर बाघ) । वह सोचने लगा कि क्या करना चाहिए? महल के पास की पुरानी राजशाला में आग लगवा दी। उधर श्रेणिक भगवान् के सन्निकट पहुंचा। भगवान् के मुख से जब यह सुना कि 'रानी चेलना शीलवती है तो श्रेणिक सन्न रह गया। वह महलों की ओर दौड़ा। अभयकुमार से संवाद पाकर प्रसन्न हुआ। उसने चेलना से पूछा- 'तुमने कल रात में सोते-सोते यह कहा था कि 'उसका क्या होता होगा?' इसका क्या तात्पर्य है ?' उसने कहा-'राजन्, कल मैं उद्यानिका करने गई थी। वहां एक मुनि को ध्यान करते देखा। वे नग्न खड़े थे। शीत लहर चल रही थी। मैं इतने सारे वस्त्रों में शीत के कारण ठिठुरने लगी। मैंने सोचा कि आश्चर्य है ! वे मुनि इतनी कठोर शीत को कैसे सह लेते हैं ? ये विचार बार-बार मन में संक्रान्त हुए। सारी रात उसी मुनि का ध्यान रहा । संभव है, स्वप्नावस्था में मुनि की अवस्था को देखकर मैंने कह दिया हो कि उसका क्या होता होगा?' चेलना की बात सुनकर राजा अवाक रह गया। महारानी चेलना ऐश्वर्य और शील दोनों से उन्नत थीं।
ऐश्वर्य से सम्पन्न और शीलाचार से प्रणत राजा जितशत्रु की रानी का नाम सुकुमाला था। वह सुकुमार और सुन्दर थी। राजा उसके सौन्दर्य पर इतना आसक्त था कि वह अपने राज्य-कार्य में भी दिलचस्पी नहीं लेता था। मन्त्रियों ने निर्णय कर राजा और रानी दोनों को घोर जंगल में छोड़ दिया। वे जैसे-तैसे एक नगर में पहुंचे और अपनी आजीविका चलाने लगे। राजा ने नौकरी प्रारम्भ की। रानी अकेली झोंपड़ी में रहने लगी। उसका मन ऊब गया। वह राजा से बोली-'अकेले मेरा मन नहीं लगता।' राजा ने एक दिन एक गवैये को देखा । वह बहुत सुन्दर गाता था। वह पंगु था। उसे रानी का मन बहलाने रख दिया।
रानी गायन सुनकर अपना समय व्यतीत करने लगी। उसके मधुर संगीत से धीरे-धीरे रानी का मन प्रेमासक्त हो गया। रानी का सम्बन्ध उसके साथ जुड़ गया। पंगु ने कहा-'राजा विघ्न है । भेद खुल जाने पर हम दोनों को मार देगा, इसलिए इसका उपाय करना चाहिए।' रानी ने कहा--'मैं करूंगी।' एक दिन नदी-बिहार के लिए दोनों गए। रानी ने गहरे पानी में राजा को धक्का मारा कि वह प्रवाह में बहते हुए दूर जा निकला। रानी वापिस लौट आई। दोनों आनन्द से रहने लगे।
रानी ऐश्वर्य से सम्पन्न थी, किन्तु उसका शील प्रणत था।
ऐश्वर्य से प्रणत और शीलाचार से सम्पन्न घटना लंदन के उपनगर की है। वह ग्वाला था। उसके घर पर एक विदेशी भारतीय ठहरा हुआ था। उसके यहां एक लड़की दूध की सप्लाई का काम करती थी। एक दिन उसका चेहरा उतरा हुआ सा था। विदेशी ने उससे इसका कारण
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