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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ६१८-६२२
किरिया-पदं क्रिया-पदम्
क्रिया-पद ६१८. सम्मद्दिट्टियाणं णेरइयाणं चत्तारि सम्यग्दृष्टिकानां नैरयिकाणां चतस्रः ६१८. सम्यग्दृष्टि नैरयिकों के चार क्रियाएं किरियाओ पण्णताओ, तं जहा- क्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा....
होती हैंआरंभिया, पारिग्गहिया, माया- आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्य- १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, वत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया। यिकी, अप्रत्याख्यानक्रिया।
३. मायाप्रत्ययिकी,
४. अप्रत्याख्यानक्रिया। ६१६. सम्मदिट्ठियाणमसुरकुमाराणं सम्यग्दृष्टिकानां असुरकुमाराणां चतस्रः ६१६. सम्यग्दृष्टि असुरकुमारों के चार क्रियाएं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं क्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
होती हैंजहा'आरंभिया, पारिग्गहिया, माया- आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्य- १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी,
३. मायाप्रत्ययिकी, वत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया। यिकी, अप्रत्याख्यानक्रिया।
४. अप्रत्याख्यानक्रिया। ६२०. एवं-विर्गालदियवज्जं जाव एवम्-विकलेन्द्रियवर्ज यावत् वैमा- ६२०. इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोडकर वेमाणियाणं। निकानाम् ।
सभी दण्डकों में चार-चार क्रियाएं होती
गुण-पदं गुण-पदम्
गुण-पद ६२१. चहि ठाणेहि संते गुणे णासेज्जा, चतुभिः स्थानैः संतो गुणान् नाशयेत्, ६२१. चार स्थानों से पुरुष विद्यमान गुणों का तं जहातद्यथा--
भी विनाश करता है उन्हें अस्वीकार कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए, क्रोधेन, प्रतिनिवेशेन, अकृतज्ञतया, करता है। मिच्छत्ताभिणिवेसेणं। मिथ्याभिनिवेशेन ।
१. क्रोध से, २. प्रतिनिवेश-दूसरों की पूजा-प्रतिष्ठा सहन न करने से, ३. अकृतज्ञता से, ४. मिथ्याभिनिवेश
दुराग्रह से। ६२२. चहि ठाणेहिं असंते गुणे दीवेज्जा, चतुर्भिः स्थानैः असंतो गुणान् दीपयेत्, ६२२. चार स्थानों से पुरुष अविद्यमान गुणों का तं जहा। तद्यथा
भी दीपन करता है-वरण या करता हैअब्भासवत्तियं परच्छंदाणुवत्तियं, अभ्यासवर्तितं, परच्छन्दानुवतितं, १. गुण ग्रहण करने का स्वभाव होने से, कज्जहेडं, कतपडिकतेति वा। कार्यहेतोः, कृतप्रतिकृतक इति वा। २. पराये विचारों का अनुगमन करने से,
३. प्रयोजन सिद्धि के लिए सामने वाले को अनुकूल बनाने की दृष्टि से, ४. कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने के लिए।
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