Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०२
सूयगडंगसुत्ते पढमे सुयक्खंधे
[७३२आहारेंति पुढविसरीरं जाव संत, अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खलस्थिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं ।
७३२ अहावरं पुरक्खायं—णाणाविहाणं मणुस्साणं, तंजहा—कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावकासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए 'जोणीए एत्थ णं मेहुणवत्तिए नामं संयोगे समुप्पजति, ते दुहतो"वि सिणेहं 'संचिणंति, संचिणित्ता तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउद्भृत्ति, ते जीवा मातुओयं पितुसुक्कं तं तदुभयं संसटुं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति, ततो पच्छा जं से माता णाणाविहाओ रसैविहीओ(विगईओ) आहारमाहारेति ततो एगदेसेणं
१. दृश्यतां पृ० १९५ पं० २॥ २. इतः परं तसपाणाणं सरीरमाहारेंति इति पाठः शी० अनुसारेण कल्पनीयो न वेति सुधीभिर्विचारणीयम्। दृश्यतां पृ० २०१ टि. १७॥ ३. अत्र [पृ० २०२५० १२] पूर्ववत् [पुढविजोणियाणं उदगजोणियाणं] इति पाठः पूरणीयो न वेति सन्देहः, सुधीभिः सम्यग् विचारणीयम् ॥ ४. अज्झारो° खं १ मु०॥ ५. कंदजोणियाणं जाव नास्ति खं १ मु० विना। दृश्यतां पृ० १९७ पं० ३॥ ६. मु० विना जाव जरा जो° खं १। जाव कूरजोणियाणं नास्ति खं १ मु. विना॥ ७. पोक्ख° खं १। पुक्खलच्छिभ खं २॥ ८. पाणसरीरा खं १॥ ९. आयरियाणं खं १॥ १०. मिलक्खयाणं खं १ विना ॥ ११. महावीतेणं पा० पु १, २ ला० सं०॥ १२. जोणिए खं १ विना ॥ १३. वत्तिए नाम खं १॥ °वत्तियाए नामं खं १ विना ॥ १४. वि नास्ति खं १॥ १५. संचिणति संचिणित्ता खं २। संचिणंति २ ख २ विना। " ते दुहतो वि सिणेहं, सिणेहो नाम अन्योन्यगात्रसंस्पर्शः,..."यदा पुरुषस्नेहः शुक्रान्तः नार्योदरमनुप्रविश्य नार्योजसा सह संयुज्यते तदा सो सिणेहो क्षीरोदकवत् अण्णमण्णं संचिणति गृह्णातीत्यर्थः" चू० । “ तत्संयोगे च....."जन्तवः....""उत्पद्यन्ते, ते च प्रथम मुभयोरपि स्नेहमाचिन्वन्ति'..."तत्र च जीवा उभयोरपि स्नेहमाहार्य....."विउदृति त्ति वर्तन्ते समुत्पद्यन्त इति यावत्" शी० ॥ १६. मातुओ ओयं पा० पु १, २ ला० । “मातुं ओयं सोणियं पितुः शुक्रम्" चू०॥ १७. पिउं सुक्कं तदु° पा० पु २। पियं सुक्कं तदु ख २ ला० । पिउसुक्कं तदु पु १ सं० मु० । पितुसुक्कतं तदुखं १। दृश्यतां नयचक्रवृत्तिः पृ० २५९ पं० १९ टि० ६, तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णकः, भगवतीसूत्रम् १।७।६१॥ १८. मत्ताए खं १ मु०। १९. वित्तीतो खं ।। विहीमो खं १ विना। “रसविगइ थीखीरादिआओ णव विगईओ" चू० । "जं से माया नाणाविहाओ रसविगइओ आहारमाहारेइ” इति भगवतीसूत्रे १७६१ ॥ २०. हारेंति मु० विना॥
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