Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 359
________________ २६२ विशिष्टशब्दाः अत्तदुकका अत्तपणेसी अत्तसमाहिय अत्तुवमायाए अत्थ अत्थमिय अत्थमेति अदत्तहारी अदिण्णादाणाइ अदिणं अदिन्नादाण अदुवा अदुस्समाण अदूर अदूरगा (या) अक्खुदंसण अद्दक्खुव अद्दक्खू अद्धाण अधम्म अघि (हि) पास अधि (हि) यास अन्नत्थ अन्नमन्न अन्नहा अन्नायभासी अन्नोन्नं अपडिण्ण अपत्तजात अपराजिए अपरिक्ख अपरिग्गह अपरिच्छ अपरिमाण अपस्समाण Jain Education International प्रथमे परिशिष्टे सूत्राङ्काः ४१८ ४६९ २२२ ५२९ ५९०, ६०५ १२४ ५४१ ३०३ २४३ ४२९, ४७४ २३२ ३, २८, ४६, ४७, ८३ इत्यादि ५५६ ४०५ १९२, ३४६ १५३ १५३ १४४ ४६ ४७ १०१, १५४, १६१ १०१, १२४-१२५, १३२, ४६६-४६७ २८०, ३९३ ४, २१२, २१३, ४५४ ७३, ३८४ ५६२ १३६ १३०, २१७, ३७०, ४७३, ६२६ ५८१, ५८२ १३३ ३९९ ७८, ३५० ५६४ ८२ ५९१ विशिष्टशब्दाः अपस्संता अपारगा अपावय अपुट्ठधम्मं अपुट्ठवं अप्पगं अप्पisसुक्कं अप्पणो (णा) अप्पत्तिय अप्पथाम अपपिंडासि अप्पभाव अप्पमत्त अप्पमायं अप्पलीण अप्पा अप्पियं अपुढे अप्पोदए अप्पं अवल अबुज्झ अबुज्झमाण अबुद्धा अबुद्धिया अबुह अबोह अब्भवखाण अब्भुग्गमेण अभय अभयप्पदाण अभयंकर अभिकम्म अभि (हि) कंख सूत्राङ्काः २३८, ४७० २१३, ५४८, ५८६ ७०, ७१ ५८२, ५९२ ९२ १४९, २०६, २९७ ३६७ ३, ४४, ४८, १७५, ४२३. ४२५, ५५३, ६३५ ३९ For Private & Personal Use Only १४७ ४३५ १३, १२७, १६५ - १६७, २५१, ३२५, ४९३ २६०, ४७९, ५७८ १६७ १६९ २३१, ४३५ १४७, २०६ ५७६ ३९९, ४९०, ५४०, ५६५, ५६८, ५९२ ४३२, ५२१ ३१ ५२, १९५ ४३, १४३ ६३४ ५९१ ३५६ ३७४ ३७६, ४०८ ५३ १२६, १३७, १९४, ५११ ६२ ४६६, ५५२ ४१३ ७७ www.jainelibrary.org

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