Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 367
________________ प्रथमे परिशिष्टे विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः agrविणीय २५३ कलुणं ३०६, ३११, ३३०, ३३४, ३३६, ३३८ ५२३ ५२४ ३२६ ३०९ १०२ १७९ ९, ११, १८१, ३२०, ३२६, ३३९, ४९४, ५२७, ५४१ ४९९ ४८२ २७० कलुसाधम कलुसाहमा कलुसं कलंबुयावालय कस कसायवयण कसिण कह कह कह कह काम ५८५ ६, ९४, १४४, १४६, १४८, १५० २०३, २३७, २६०, २७९, २९६, ४०२, ४०७, ४३९, ४५८, ४६८ ४१५ ९.८ कामभोग काममुच्छिय कामी कामेसण काय १४८ १४८ ५२, ११०, २४९, २९८, ३८२, ४४५, ४९६, ५०४, ५०८, ५४७, ६१९ ४४५ १५२ कायवक कारित कार वेज्जा कारवेती कारवं काल ९४, ११४, २३९, ३५१, ५९४, ५३४ ५७६ १०५, १९० कासव ११७, १३५, १६२, १९५, २२३, २४५, ३०१, ३५८, ५०१, ५२८, ६२७ २८३ कासवर्ग कालमाकंखी कालातियारं कालुणिया Jain Education International ४९४ ३७७ १३ विशिष्टशब्दाः कासिय कासी काहि काहित किंचण किच्चती किच्चा किच्चोवदेसग किडुं किती कित्ति किब्बिसिय किमी किरियवाद किरियाकिरियं (रीणं) किरियावाइदरिसणं किरिथं किवण किसामवि किसे किह कीडापदोस की तगड कीरति कीव कीस कुओ (तो) कुंभी कुकम्मि कुजए कुज्जा कुज्झ कुटुं कुणिम कुद्धगामिणी कुप्प सूत्राङ्काः १०५ २६५ २६८ १३८ ४१, ८५ ९५, ९६ १०, ६१६, ६२७ ७६ ४६५ २१७ ४५८ For Private & Personal Use Only ७५ ३१९ ५५५ ३७८, ४८९ ५१ ५३५, ५३८, ५४२ १४६ ९७ ६९ ७० ४५० ५३, ५४ १८१, १९३ १९३ १४, ४४, २३४, २३६, ६२६ ३२३ ३९८ १३३ २२२, २२३, २४४, २४५, २५९, ४७५,४८२, ४९४, ५८५, ५८८ ११६,५८८, ६३४ २८५ २५४, ३२६ १८० २६१, ४६७ www.jainelibrary.org

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