Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
२८१
सूत्राङ्काः
६०३
४३४
३०७
५७९
३३७
सूत्रकृताङ्गसूत्रप्रथमश्रुतस्कन्धान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः विशिष्टशब्दाः
सूत्राङ्काः विशिष्टशब्दाः नायपुत्त
२५, ३६५, ३७४ निविट्ठाण नारग
नि(णि)व्वाण ४७२, ४९४,५०७, ना(णा)री २४०, २४१, २६६
५१७, ५१८, ५३० नावकंख ४७०, ६१५ निव्वाणसेट्ठ
३७५ नावणए ६३६ निव्वावओ
३८६ नाहिंति
निविंद
१५४ निउंजमाण ४७७ नि(णि)व्वुड
५३४, ६२७ निकाममीण ४८० निसह
३६६ निकामसारी
निसामिया निक्खम्म
४९६ निसामेजा निक्खंता
निसितो निज्झाय ६२८ नि(णि)सीय
२४९, ४६५ निज्जरं
५५५ निस्सारए निहितहा ६२२ निस्सारियं
५८२ निट्ठ
६२७ निहाय नि
५८५ निहं निमित्त
५४३, ५४४ नीरय निमंतयंति(तेंति) १९६, २००, २५०, २५२ नीवार
२०० नि(णि)मंतण २०३, २७६ नीवारगिद्ध
४०५ निम्ममो
४४२
नंदण नियच्छइ
१० नंदीचुण्णगाई नि(णि)यच्छति ३६, ४४, ४५, ४१८ पडस्स नियतिभाव १६ पकत्तित्ता
४१५ नियम
पकत्तति
३२९ नियाणछिन्न ४९६ पकत्थती
२६५ नियामित्ता २४६ पकप्पित(य)
२०७, २१९ नियायटी
पकरेंति
५४९ नियंठिया
४६२ पकुव्व
४७७, ४८०,४८९ निरवेक्खो
४४३
पकुव्वतो निरहंकारो
४४२ पक्कम निरामगंध
पक्खिप्प
३२०, ३२४,३३३ निरावकंखी ४९६ पक्खी
३७२ निरुभित्ता २९७ पखज्जमाण
३३३ निरुद्धगं
पगब्भती
१३१, १५२ निरुद्धपण्णा
५४२ पगम्भिणो निरंतरं
३४८ पगभिया(ता) १३, १०८, १४६, २२० निवट्टएजा
पगास
१३९, ३५७
२८६
३९०
३५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475