Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 380
________________ विशिष्ट शब्दाः पथपास पयहेज पया सूत्राङ्काः ३५, ३६ ૧૪૮ १३२, ३३५, ४७५, ४७६, ४८७, ५४६, ५७५, ५८९, ५९४, ५९९ १६६ ३१४, ३३३ २९८, ४५४ पयाता पयंति परकिरिया परकम्म परकंतं पर गेह परतित्थिय परतो परत्था परदत्तभोइ परदारभोइ परवम्मियाण परपरिवाय पर भोयण परम परमाणुगामिय परमत्त परमत्थि परमाययट्ठिए परलोग परवत्थ पराजयं पराजिय परिकप्प परिगिज्झ परिग्गह सूत्रकृताङ्गसूत्र प्रथमश्रुतस्कन्धान्तर्गतविशिष्टशब्द सूचिः विशिष्टशब्दाः परिताण परिताणियाणि १८८, २४८, ५८४ २३९, ४३२, ४३३ Jain Education International ४६५ '३५२ ४०५ १४५, २३०, ३६८, ४३६, ५१८ ४४२ ४५६ ३७५ १५७ १२०, १५२ ४५६ २०४ ४१६, ५५३ ३८४ ६३६ ५६६ ३०५ ६३४ २०५ ३९३ २ ११९, २३२, ४३९, ४४३, ४४९, ४८०, ४८५ ४४५ परिग्गही परिजाणिया १, ४४५, ४५४, ४५६, ४५९ परिणाम ४२७ परिण्णय परितप्प ७७, १९४, २४३, ४०२, ४२८, ४७२, ५३०, ६१० २३८, २३९, ३४४, ४९० परिसम्पति परिसा परिदेव १४९ परिनिकुडे २२४, २४६ परिपच्चमाण ४७६ परिपीलेज २३४ परिभव ११२, ५६९ परिभास २११, २१४ परियत्तिती ११२ परियत्तयंता ३१४ परियाय ६८, ८३ परिवजए ७९ परिवज्जएजा ४९२ परिवज्जयंते ५७८ परिवारिय १८३ परि विच्छ १६६ परिव्वज्जा ४७३, ४८२, ४८७, ४९५, परिव्वज्जासि ५५२, ५७९, ५८५, ५९३ ८८, २२४, २४६, २९९, ४३६ परिव्वते (ए) ७८, ११४, २१०, ४४३, ४६६, ५२८, ५२९ १९२, २२९ २६४ ४९२ ४०० १२९ ५९८ २४९ परिसंकमाणा परिसंखाय परिहायती परिहास परिहिंति परित्ता परी सोस परे (परेणं) परं २८३ पलिउंचण पलिउंचयंति सूत्राङ्काः ३२ ३४ २७१ ६३६ १७६, ३२३, ३९० १२, ४४, ५०, ५२, ९६, १०७, ११२, १७६, २०९, ३४३, ३७९, ३८४, ४०९ ४४७ ५६० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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