Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 365
________________ सूत्राङ्काः ३४३ एग २८१ ३४१, ३६१ ३४४, ५६५ ३५०, ५६२ ३३६, ३४९, ३९१ १५१ ४७८ ३८३, ४९१ ३६५, ५९० ३४८ उवागत ३७२ २१८ २६८ प्रथमे परिशिष्टे विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः । विशिष्टशब्दाः उवणेति एगायते उवधा(हा)णवीरिय १२२, १४०, १५७, एगो ५३१ उवयंति २७३ एगतकूड उवलद्ध एगंतदिट्ठी उवलिप्प ५५ एगंतदुक्खं उववन्न एगंतमोणेण उवसग्ग १२५, २२४, २४६, ४६४ एगतलूसगा उवसंत ४२८ एगंतसमाहिं उवसंपज्ज ४२३ एगंतहिय उवहाण २०२ एताणुवीति उवहाणव एति(ई) उवहि १३७ एतोवम एयाई उवादाय ४२१ एरावण उवायं २४८ एरिसा उवास एवजीविणो उविति ३८२, ३०८ टि. उते ३०८ उवेच एसणासमिय उवेति ३०४, ३९१, ४१०, एसिया ५६८,५९६ एसिंति उवेह २०५, २०९, ५५२ एसेजा उवेहिया ११८ एस्संत उति १२६,३००,५४७ एहति उसिणोदगतत्तभोइ १२८ उसिया २६६ एहिति उसीर २८५ ओए उसुचोदिता ३०७, ३३०, ३४१ एगचरं एगचारी ओदरियाणुगिद्ध एगता २६० ओभासति एगतियं २५४ ओभासमाणो एगत्त ४८४ ओमाण एगपक्ख ५३९ ओमुद्धगा एगविऊ ओरम एगाइया ३४७ ओरस एवं एसण ५०४, ५३८ १०४, ५७३ ५०९ ४३८ ५६० २७,४०, ६३ ४०५ १८७ एहि ओघ ओज २५७, ६०० २४२ २७८ ४०५ २५४ २५० ५३८ ५८३ ३४५ ४४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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