Book Title: Adhyatma ki Varnmala Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ अध्यात्म की वर्णमाला विषय को मत पढ़ो । रुचि किधर ले जाएगी, इसकी समीक्षा करके पढ़ो। . मैं मानता हूं, रुचि के अभाव में अध्यात्म और तत्त्वज्ञान का विषय नहीं पढ़ा जाता इसलिए उस विषय में रुचि पैदा करो। वह रुचि सही दिशा और सही मार्ग पर ले जाएगी। रुचि पैदा करने के लिए मूल्यांकन की दृष्टि का विकास करो। उपयोगिता का अवधारण और परिणाम का विश्लेषण करो। अज्ञान अवस्था में एक प्रकार की रुचि होती है । ज्ञान की अवस्था में वह बदल जाती है, दूसरे प्रकार की पैदा हो जाती है। संस्कृत का विद्यार्थी रुचि की समस्या से जूझता है। पूज्य कालूगणी कहते थे-संस्कृत पढ़ना अलूनी शिला को चाटना है । कुछ दिन पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता। पढ़ते-पढ़ते रुचि पैदा हो जाती है, फिर उसे छोड़ने का जी नहीं करता। प्रत्येक विद्या, साधना, व्यवसाय और प्रवृत्ति के साथ शायद यही घटित होता है। आसन करने में तुम्हारी रुचि नहीं है । यदि तुम जान लो कि शरीर के लिए आहार जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है भासन । फिर रुचि अपने आप पैदा होगी। ___ ध्यान में तुम्हारी रुचि नहीं है। इसके पीछे भी अज्ञान का हाथ है । यदि यह ज्ञान हो कि एकाग्र होना उतना ही जरूरी है जितना जरूरी है जीना, श्वास लेना। फिर ध्यान के प्रति रुचि कैसे नहीं होगी ? आहार के लिए ज्ञान जरूरी है। आसन के लिए ज्ञान जरूरी है और ध्यान के लिए भी ज्ञान जरूरी है। यह ज्ञान आएगा कहां से ? उसका मूल स्रोत है-स्वाध्याय । कोई-कोई व्यक्ति ऐसा होता है, जिसमें सहज प्रतिभा होती है, अन्तर्दृष्टि जागृत हो जाती है, पर सब ऐसे नहीं होते । सामान्य आदमी की दृष्टि स्वाध्याय से विकसित होती है इसलिए उसका सही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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