Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ चक्षुष्मान् ! स्वाध्याय करो, इसका हृदय तुम्हें समझना है । इसका पहला चरण है पाठ । वह पहला है, अन्तिम नहीं है । पहली सीढी पर चढ़ना अनिवार्य है किन्तु मंजिल तक पहुंचने के लिए वह पर्याप्त नहीं है। वहां पहुंचने के लिए दूसरी, तीसरी सीढी का आरोहण करना होता है । स्वाध्याय का दूसरा सोपान है मनन । पहले तुम पढोउच्चारण शुद्धि करो और शब्द का अर्थ समझो । उसके बाद उसका मनन करो। एक सामान्य सूत्र है-आधा घण्टा खाओ, साढ़े तीन या चार घंटे तक पचाओ। यह प्रसिद्ध सूक्त तुमने सुना होगा-आदमी खाने से पुष्ट नहीं होता, पचाने से पुष्ट होता है । आहार की प्रक्रिया में जो स्थान पाचन का है, वही स्थान स्वाध्याय की प्रक्रिया में मनन का है । पाचन ठीक होता है तब बनता है रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र । ये सब बनाते हैं शरीर को शक्तिशाली । यह क्यों ? इसका तात्पर्य क्या है ? इसका सम्बन्ध केवल अस्तित्व से है या उपयोगिता से भी है ? मानवीय सम्बन्धों के विकास में इसका कितना मूल्य है ? ये मनन के पहलु हैं । इसके द्वारा ज्ञान का कल्पतरु शतशाखी बन जाता है। जो लोग मनन करना नहीं जानते, उनका ज्ञान-वृक्ष कोरा तना बनकर रह जाता है, उसके शाखाप्रशाखा का विस्तार नहीं होता । इस बात को तुम उदाहरण से समझो । सूत्र का एक वचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70