Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 28
________________ चक्षुष्मान् ! मन बहुत चंचल है । इसका हम सबको अनुभव है । चंचलता का सम्बन्ध श्वास के साथ है। श्वास छोटा, मन अधिक चंचल । श्वास लम्बा, मन की चंचलता कम । श्वास का संयम, मन अमन हो जाता है। श्वास के अनेक प्रयोग हैं। उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है श्वास का संयम (कुम्भक) । श्वास का निरोध संवर है । यह काय संवर का एक भाग है । मन का संवर हो, उससे पहले काय का संवर अपेक्षित है। निर्विचार होने के लिए विचार का आलम्बन उपयोगी नहीं होगा। विचार की उच्छृखलता को संयत करने के लिए विचार का आलम्बन उपयोगी हो सकता है । निर्विचार का मार्ग सर्वथा भिन्न है। विचार की प्रेक्षा करो, उसे देखने का अभ्यास करो, निर्विचार बन जाओगे। श्वास संयम के साथ विचार को देखने का अभ्यास करो, विचार थम जाएंगे। . . दूसरा मार्ग यह है-विचार को देखने के लिए मन को संकल्पित करो । श्वास अपने आप थम-सा जाएगा । तुमने प्रयोग किया है इसलिए तुम अनुभव के स्तर पर जान सकते हो-देखने का एक अर्थ है सहज ही श्वास का संयम । जैसे-जैसे द्रष्टाभाव गहरा होगा, श्वास की गति मंद हो जाएगी और मंद होते-होते संयम की स्थिति तक पहुंच जाएगी। कुछ लोग कहते हैं—प्रेक्षाध्यान की पद्धति में अनेक प्रयोग हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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