Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 26
________________ चक्षुष्मान् ! तुम इस सचाई को जानते हो - श्वास का अर्थ है जीवन और जीवन का अर्थ है श्वास । जीवन और श्वास को कभी पृथक नहीं किया १० जा सकता । स्वरूप की दृष्टि से जीवन और श्वास एक नहीं हैं । जीवन का अर्थ है प्राणशक्ति और श्वास का अर्थ है प्राणशक्ति का ईंधन । दूसरे शब्दों में जीवन को श्वास- प्राण और ईंधन को श्वास कहा जा सकता है | श्वास और श्वास - प्राण- दोनों सर्वथा भिन्न नहीं हैं और सर्वथा अभिन्न भी नहीं हैं । श्वास का ईंधन मिलता है, तब प्राणशक्ति प्रज्वलित रहती है । तुम यदि प्राणवान् रहना चाहो तो दीर्घश्वास प्रेक्षा का प्रयोग अवश्य करो । समवृत्तिश्वास प्रेक्षा उसका अगला चरण है । इसमें भी श्वास लम्बा लेना और लम्बा छोड़ना आवश्यक है। सिर्फ नथुनों की स्थिति बदलेगी । दीर्घश्वास में दोनों नथुनों से श्वास लिया जाता है । इसमें पहले बाएं नथुने से श्वास लो और दाएं से रेचन करो। फिर दाएं से श्वास लो और बाएं से रेचन करो। इसके साथ चित्त को जोड़ो । यह प्रयोग नाड़ीतंत्रीय संतुलन के लिए बहुत उपयोगी है । इसमें इड़ा और पिंगला — दोनों का संतुलन बनता है, क्रिया और मन — दोनों में सामंजस्य बैठता है । को क्रिया तनाव पैदा करती है । क्रियाशून्य मन जीवन-च -चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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