Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ चक्षुष्मान् ! इस दुनिया में अनेक रहस्यपूर्ण वस्तुएं हैं। उनमें सर्वाधिक रहस्यपूर्ण है मस्तिष्क । उसके रहस्यों को जानने का यत्न किया गया, किया जा रहा है । जैसे-जैसे यत्न हो रहे हैं, रहस्य और गहराता जा रहा है। प्राणी के शरीर में एक सूक्ष्मतम शरीर है । उसका नाम है कर्म शरीर । सारे रहस्यों का सरजनहार वही है। मस्तिष्क का एक भाग है अवचेतन (हाइपोथेलेमस), जो भाव चेतना के लिए उत्तरदायी है। विधायक भाव रहे, निषेधात्मक भाव सक्रिय न बने, इस स्थिति का निर्माण करने के लिए आवश्यक है अवचेतन का परिष्कार। तुम शांतिकेन्द्र पर ध्यान करो, परिष्कार अपने आप होगा। मन और भाव की निर्मलता एकाग्रता के साथ जुड़ती है, परिष्कार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। यह प्रयोग विवेक और धैर्य के साथ करो। आरम्भ में ही लंबे समय तक यह प्रयोग मत करो। इसकी समय-मर्यादा को धीमे-धीमे बढ़ाओ । ऊर्जा अथवा कुण्डलिनी को सक्रिय करना कठिन है । उससे भी कठिन काम है उसे झेलना, उसके ताप तथा उष्माजनित प्रवाह को सहन करना। ___इस सचाई को मत भूलो-प्रयोगकाल में शरीर पूर्णरूपेण सीधा रहे । ऊर्जा का गति-प्रवाह वक्र न हो। उसकी वक्रता अनेक समस्याएं पैदा कर देती हैं। रोग को मिटाने वाला प्रयोग रोग का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70