Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 59
________________ ५४ अध्यात्म की वर्णमाला करो । उससे भय के स्पन्दनों का उपशमन नहीं, परिवर्तन हो जाएगा । भाव विशुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र में उपलब्ध है— भावविसोहि काऊण निब्भए भवति - भयभीत मनुष्य भाव विशुद्धि का प्रयोग कर अभय बन जाता है । 1 भाव एक जैसा नहीं रहता, बदलता रहता है । कभी विधायक और कभी निषेधात्मक । कभी शुद्ध और कभी अशुद्ध । विधायक भाव की पुष्टि के लिए अनुप्रेक्षा का प्रयोग आवश्यक है । अनुप्रेक्षा के बिना प्रेक्षा का चित्र अधूरा है । तुम अनुप्रेक्षा का यथार्थ मूल्य आंको । Jain Education International For Private & Personal Use Only लाडनूं १ अगस्त, १९९२ www.jainelibrary.org

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