Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 64
________________ चक्षुष्मान् ! शरीर में आत्मा है, चैतन्य है। वह चैतन्य पूरे नाड़ीतंत्र में व्याप्त है इसलिए नाड़ीतंत्र की हर कोशिका सचेतन है। वह आदेश को मानती है और उसके अनुसार बदलती है। अनुप्रेक्षा में आदेश, संदेश भथवा सुझाव का बहुत मूल्य है। अपने आपको सुझाव दो। कोशिकाओं के साथ मैत्री-संबंध स्थापित करो। वे तुम्हारे आदेश को स्वीकारेंगी। यह स्वीकृति व्यवहार परिवर्तन के लिए बहुत उपयोगी बन पाएगी। ज्ञान और आचरण अथवा कथनी और करनी की दूरी को मिटाने के लिए प्रेक्षा के संदेश-सूत्रों को दोहराओ प्रेक्षा श्रद्धां यायात् श्रद्धा वीर्य यायात् वीर्य चरणं यायात् अंतर्भाव मे चिन्तायां मे आचरणे मे व्यवहार मे समता भूयात् समता भूयात् नव सूर्यो मे उदयं यायात् उदयं यायात् तेजोलेश्या उदयं यायात् उदयं यायात । लाडनं १ नवंबर, १९९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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