Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 67
________________ ३२ चक्षुष्मान् ! ___अनुभव करो-आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है, द्वन्द्वात्मक चेतना समाप्त हो जाती है। द्वंद्वात्मक चेतना का परिणाम है तनाव । आध्यात्मिक चेतना का परिणाम है तनाव मुक्ति । सामाजिक जीवन में तनाव उपयोगी माना जाता है। यदि तनाव न हो तो सामाजिक अन्यायों का प्रतिकार ही नहीं किया जा सकता । इस तर्कात्मक भाव ने तनाव को प्रोत्साहन दिया है। आध्यात्मिक अनुभव इससे भिन्न है। अन्याय का प्रतिकार करने के लिए तनाव आवश्यक नहीं है। बहुत बार तनाव सम्यक् प्रतिकार में बाधा डालता है। तनाव में छूत का खतरा बढ़ जाता है। छूत से रक्षा करने वाली रोग-प्रतिरोध प्रणाली मस्तिष्क के नियंत्रण में है । मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाओ । तनाव कम होगा, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ेगी। ___मस्तिष्कीय क्षमता को बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण सूत्र है--इच्छाशक्ति का विकास । जैसे-जैसे इच्छाशक्ति प्रबल होती है वैसे-वैसे मस्तिष्कीय क्षमता का विकास होता है । भौतिक स्पर्धा इच्छाशक्ति को घटाती है । स्पर्धा से बचो। इच्छाशक्ति को विकसित करो । आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने में उसका उपयोग करो। एक नई अनुभूति का द्वार खुल जाएगा। चाडवास १ जनवरी, ११९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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