Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ ३८ हुई आंखों की अवस्था में यह प्रयोग किया जा सकता है । मन की चंचलता को कम करना अथवा एकाग्रता का अभ्यास करना बहुत अच्छा है पर मन की सीमा के पार गए बिना जो घटित होना चाहिए, वह नहीं होता, इसलिए कुछ क्षणों के लिए निर्विचार रहने का अभ्यास करो । उसे धीरे-धीरे बढ़ाओ । आंतरिक चेतना का प्रस्फोट इसी अवस्था में होता है । अध्यात्म की वर्णमाला मन की एक अवस्था है अमन । उस अवस्था का अनुभव ध्यान की एक विशिष्ट भूमिका है । उसका अभ्यास दृष्टिकोण को बदलने वाला होगा । उससे आत्मा की एक झलक मिलेगी । Jain Education International लाडनूं १ नवम्बर, १९९१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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