Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ चक्षुष्मान् ! उसे देखो, जो सबको देखता है । चक्षु स्वयं को नहीं देखता, केवल दूसरों को देखता है । मानस चक्षु में क्षमता है इस चर्म चक्षु को देखने की । चक्षु खुला हो या बन्द, किसी भी मुद्रा में हो, उस पर मन को एकाग्र करो और उसके भीतर झांको । वह खिड़की है मस्तिष्क की । उससे भीतर गहरे तक झांको । चेतना मस्तिष्क तक पहुंच जाएगी। सावधानी आवश्यक है। एक साथ लम्बे समय तक यह प्रयोग मत करो। धीमे-धीमे उसे बढ़ाओ । एकाग्रता की साधना के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । w चंचलता में जीभ और चक्षु-दोनों का हाथ है । चंचलता को कम करना चाहे, उसके लिए आवश्यक है—– जीभ और चक्षु - दोनों को स्थिर करना सीखे | दर्पण चक्षु के बाह्य आकार को प्रदर्शित कर गुणवत्ता को प्रदर्शित नहीं कर सकता । अंतश्चक्षु चक्षु प्रकट करने में सक्षम है । बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क वाली इन्द्रियों में चक्षु प्रधान है। दृश्य जगत् मन को सबसे अग्रणी है । १६ एक संस्कृत कवि ने लिखा है—गुणी मनुष्य भी अपने स्वरूप की पहचान के लिए पर की अपेक्षा रखता है । दूसरों को देखने वाली आंख अपने आपको दर्पण के द्वारा ही देख पाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only चक्षु द्रष्टा है । वह अपनी क्षमता से द्रष्टा नहीं है । उसके देता है । उसकी के अतिशय को स्थापित करने चंचल बनाने में www.jainelibrary.org

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