Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ चक्षुष्मान् ! प्राण का मूल्यांकन करो । उससे संचालित है शरीर का समूचा क्रियाकलाप । उसकी ऊर्जा के बिना एक अंगुली भी नहीं हिलती। चरण जहां का तहां रह जाता है । वाक् अवाक् बन जाती है । उन्मेष और निमेष थम जाता है। प्राणऊर्जा का एक मुख्य केन्द्र है नासाग्र-नाक का अग्र भाग । महावीर की मुद्रा का एक अंग है नासाग्र पर दृष्टि का स्थिर विन्यास --दृशौ च नासा नियते स्थिरे च । __ तुम चाहते हो-ध्यान-काल में विचारों का सिलसिला टूट जाए, निर्विचार ध्यान की भूमिका उपलब्ध हो जाए। नासान पर ध्यान करो, तुम्हारी चाह धीमे-धीमे पूर्ण होने लगेगी । जैसे-जैसे ध्यान जमेगा, वैसे-वैसे शक्तिकेन्द्र पर नियंत्रण सधेगा । हठयोग का एक सिद्धांत है कि नासान पर ध्यान करने से मूल नाड़ी तन जाती है। यह प्रयोग श्वास प्रेक्षा से भिन्न है । श्वास प्रेक्षा में नथुनों के आसपास या भीतर श्वास पर ध्यान केन्द्रित होता है । इस प्रयोग में श्वास पर ध्यान देना अपेक्षित नहीं है । वह अपने आप लम्बा और मंद हो जाता है। नासाग्र पर खुली आंख से भी ध्यान किया जा सकता है । वह मनिमेष प्रेक्षा या त्राटक है । उससे आंखों पर तनाव आता है । दृष्टिशक्ति कमजोर हो, अवस्था प्रौढ़ हो, उस स्थिति में वह करणीय नहीं है इसलिए पूरी समीक्षा किए बिना यह प्रयोग न किया जाए । मुंदी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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