Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ ३२ अध्यात्म की वर्णमाला नहीं ली जाती । उसे झेलने के लिए कोई आनन्द का स्रोत चाहिए और वह भी परिस्थिति की दुःखदता से अधिक सुखद । तुम सुख की धार को मत देखो। वह बहती है, कृश हो जाती है और सूख जाती है । उस स्रोत से संपर्क स्थापित करो, जो असीम है, अमाप्य है | संपर्क चिरकालिक हो । केवल स्पर्श न हो । आनन्द केन्द्र की दीर्घकालीन साधना हर्ष और शोक – दोनों से परे एक नई चेतना रहे या बंद, बातचीत चले या मौन, स्मृति उसकी बनी रहे । यह सतत स्मृति जागरण के लिए पर्याप्त है । अवश्य फलित होती है | जागती है । आंख खुली Jain Education International For Private & Personal Use Only लाडनूं १ अगस्त ९१ www.jainelibrary.org

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