Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ चक्षुष्मान् ! तुम विश्वास करो-श्वास के दर्शन का। वह बाहर से भीतर जाता है और भीतर से बाहर आता है। यह क्रम निरन्तर चलता है । आवेश शान्त होते हैं तब श्वास अपनी नियमित गति से चलता है। आवेश की अवस्था में उसकी गति तेज हो आती है, संख्या बढ़ जाती है। उसकी गति को तीन रूपों में समझा जा सकता हैस्वाभाविक गति, तेज गति और मंद गति । दो सेकेण्ड में श्वास का पूरक होता है और दो सेकेण्ड में उसका रेचन होता है, यह श्वास की स्वाभाविक गति है। इसके अनुसार एक मिनट में श्वास की संख्या पन्द्रह होती है । आवेश की अवस्था में श्वास की गति तेज हो जाती है। एक मिनट में उसकी संख्या अठारह-बीस से लेकर पचास-साठ तक हो जाती है। दीर्घ श्वास के अभ्यास द्वारा श्वास की संख्या में कमी की जा सकती है। उसकी गति मंद हो जाती है। श्वास की संख्या एक मिनट में बारह-दस तथा दो या एक तक पहुंच जाती है । तुम श्वास पर ध्यान दो, उसे देखो। उसकी गति अपने आप मंद हो जाएगी। संकल्प करो, श्वास लम्बा लो, गति मंद हो जाएगी। मन की एकाग्रता का यह पहला चरण है । श्वास की चंचलता जितनी कम, उतनी मन की चंचलता कम। श्वास और मन की चंचलता का गहरा सम्बन्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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