Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ १८ अध्यात्म की वर्णमाला इड़ा (पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम) और पिंगला (सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम) के प्राण-प्रवाह चेतना को बहिर्मुखता की ओर ले जाते हैं । सुषुम्ना का प्राण प्रवाह व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाता है इसीलिए सुषुम्ना के प्रवाह - काल में ध्यान करना अच्छा माना जाता है । अंतर्यात्रा के प्रयोग में चेतना को सुषुम्ना के प्राण-प्रवाह के साथ जोड़ा जाता है । इसका धीमे-धीमे अभ्यास करते-करते बाह्य पदार्थों की आसक्ति कम हो जाती है । आत्मा के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है । अंतर्यात्रा प्रेक्षाध्यान का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । इसका तुम सही-सही मूल्यांकन करो । मस्तिष्क के बाद हमारे शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है सुषुम्ना । इसीमें विशिष्ट चैतन्य केंद्र उपलब्ध हैं । चित्त की यात्रा शक्ति केंद्र से ज्ञान केंद्र तक होती है तब अपने आप कुछ विशेष आनन्द की अनुभूति होती है । तुम इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से भी कर सकते हो । ध्यान के पूर्ण प्रयोग के साथ पांच मिनट का समय इसके लिए दिया जाता है । स्वतंत्र रूप से इसका प्रयोग बीस मिनट तक किया जा सकता है । इसका अनुभव नया आयाम खोलेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only पाली १ जनवरी, १९९१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70