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अध्यात्म की वर्णमाला
इड़ा (पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम) और पिंगला (सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम) के प्राण-प्रवाह चेतना को बहिर्मुखता की ओर ले जाते हैं । सुषुम्ना का प्राण प्रवाह व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाता है इसीलिए सुषुम्ना के प्रवाह - काल में ध्यान करना अच्छा माना जाता है ।
अंतर्यात्रा के प्रयोग में चेतना को
सुषुम्ना के प्राण-प्रवाह के साथ जोड़ा जाता है । इसका धीमे-धीमे अभ्यास करते-करते बाह्य पदार्थों की आसक्ति कम हो जाती है । आत्मा के प्रति आकर्षण बढ़ने
लगता है ।
अंतर्यात्रा प्रेक्षाध्यान का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । इसका तुम सही-सही मूल्यांकन करो । मस्तिष्क के बाद हमारे शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है सुषुम्ना । इसीमें विशिष्ट चैतन्य केंद्र उपलब्ध हैं । चित्त की यात्रा शक्ति केंद्र से ज्ञान केंद्र तक होती है तब अपने आप कुछ विशेष आनन्द की अनुभूति होती है ।
तुम इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से भी कर सकते हो । ध्यान के पूर्ण प्रयोग के साथ पांच मिनट का समय इसके लिए दिया जाता है । स्वतंत्र रूप से इसका प्रयोग बीस मिनट तक किया जा सकता है । इसका अनुभव नया आयाम खोलेगा ।
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पाली
१ जनवरी, १९९१
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