Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 18
________________ चक्षुष्मान् ! शरीर एक संहति है । कोशिका जैसे सूक्ष्म और हाथ-पैर जैसे स्थूल अवयवों से निर्मित संहति । यह एक इकाई है, अनेक इकाइयों का एक संगठन । शरीर का कायोत्सर्ग - अवयवी - कायोत्सर्ग है । पहले इसी का अभ्यास करो | अभ्यास के सधने पर अवयव कायोत्सर्ग का अभ्यास प्रारम्भ करो । सर्वप्रथम कंठ का कायोत्सर्ग करो । कंठ हमारे शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अवयव है । वह स्वर-यंत्र का स्थान है । उसमें थायराइड और पेराथायराइड ग्लैण्ड हैं । विशुद्धि-केन्द्र भी वहीं है । मन की चंचलता और स्वर-यंत्र का घनिष्ट सम्बन्ध है । भाषा को कभी विभक्त नहीं किया जा सकता । स्मृति करो, भाषा अनिवार्य होगी । कल्पना करो, वहां भी भाषा अपरिहार्य है । भाषा के बिना चिन्तन की बात सोची ही नहीं जा सकती । स्मृति, कल्पना और चिंतन - ये सब मन की प्रवृत्तियां हैं । यदि तुम मन की चंचलता को कम करना चाहो तो अनावश्यक स्मृति, अनावश्यक कल्पना और अनावश्यक चिंतन से बचो । अनावश्यक से बचने का उपाय है—-भाषामुक्त रहने का अभ्यास । -- भाषा - युक्त होने का अर्थ है चंचलता की ओर जाना । भाषा - मुक्त होने का अर्थ है मन से परे जाना । पहली स्थिति काम्य नहीं है और दूसरी स्थिति अभ्यास साध्य है । तुम पहले बीच का मार्ग चुनो । भाषा का अतिप्रयोग न हो, इस स्थिति का निर्माण करने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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