Book Title: Adhyatma ki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 20
________________ चक्षुष्मान् । एक साथ पूरे शरीर का कायोत्सर्ग करो, यह बहुत अच्छा प्रयोग है। कायोत्सर्ग का यह अखंड प्रयोग है । उसे खंड-खंड में भी किया जा सकता है। कंठ का कायोत्सर्ग कामवृत्ति के संतुलन के लिए बहुत उपयोगी जीभ का कायोत्सर्ग मन की चंचलता को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ दोनों होठ बन्द करो। ऊपर-नीचे के दांत परस्पर मिले नहीं। जीभ को अधर में रखो। ध्यान जीभ पर केन्द्रित करो। ___मनुष्य मौलिक वृत्तियों के साथ चलता है। काम की प्रवृत्ति एक शक्तिशाली मनोवृत्ति है। उसे संतुलित या अनुशासित रखने के लिए जीभ का कायोत्सर्ग एक रहस्यपूर्ण वास्तविकता है। मनुष्य का शरीर रहस्यों से भरा हुआ है। उसमें नाड़ीतंत्र के ज्ञानतंतु और कर्मतंतु, ग्रन्थितंत्र के रसायन तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध एवं सहयोग नाना प्रकार के आचरण और व्यवहारों के प्रेरक बनते हैं। उन सब आचरणों और व्यवहारों को नियमित, संतुलित एवं अनुशासित रखने के लिए अवयवी-कायोत्सर्ग का भी अभ्यास करो। पैर का अंगूठा और एक-एक अंगुली-इन सब अवयवों पर पृथक्पृथक् कायोत्सर्ग का अभ्यास करो। एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर की पद्धति में संवादी-बिन्दुओं Jain Education International al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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