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आचा०
॥४२८॥
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फक्त बळे छे, एटलंग नहीं पण शोक एटले व्हालांना वियोगथी उत्पन्न थयेल शोकथी मूढ बनीने शुभ व्यापार (धर्म) ने जे भुले ते पण बळे छे, तथा जेने संसारी सुख भोगववानी इच्छा थइ होय, तेवोपण बळे छे कारण के पुरुष वेदवाळो खीने इच्छे छे. अने स्त्री पण पुरुषने इच्छे छे, अने नपुंसक तो बनेने इच्छे छे तेनी प्राप्ति न धाय तो आकांक्षा पुरी न थवाथी ते अरति दाहे बळे छे, अने (च) शब्दथी (शब्द विगेरे पांच इन्द्रियना विषयोनी) इच्छा अने कामनी प्राप्ति न थाय तोपण जीव अरविना दाहे बळे छे, तेथी आ प्रमाणे कषायो शोक अने वेदनो उदय ए त्रणे जीवने बाळनारा होवाथी ते उष्ण छे, अथवा वधुं मोहनीयकर्म, अथवा आठे प्रकारनुं कर्म उष्ण छे आधी पण वधारे दाहकपणावा तप छे ते अधी गाथामां बतान्युं छे, कारण के उष्ण कपायने पण तप तपावे छे. माटे ते तप उष्णतर छे. मूळ गाथामां कषाय जोडे आदि शब्द छे. तेथी एम जाणवुं के तप कपायने वाले; तेम शोक अने वेद उदयने पण बाळे छे. आ प्रमाणे अनेक रीते शीत उष्ण बतावी जे अभिप्रायवडे आचार्ये द्रव्यभावथी भेदवाळा परिषह प्रमाद उद्यम विगेरे रूपवाळा शीत उष्ण बतावेल छे, ते आचार्यना अभिप्रायने हवे प्रगट करे छे.
सी उपहास सुहदुहपरी सहकसाय वेय सोयसहो । हुज्ज समणो सया उज्जुओ, य तत्रसंजमोवसमे ॥ २९०॥
शीत अने उष्ण ए वन्नेनो जे स्पर्श छे, तेने सहन करे; एटले, शीतस्पर्श अने उष्णस्पर्श शरीरे (अधिकपणाम ) लागयाथी जीववेदनाने अनुभवतो होय; छतां आर्तध्यान न करे; एटले, शरीर अने मनने अनुकुळ थतां सुख अने विपरित धतां दुःख अनुभवे; तथा परिषद कषायवेद तथा शोक जे ठंडी तथा गरमीथी उत्पन्न थाय ते बधांने सहे छे. आ प्रमाणे ठंड अने उष्ण विगेरे
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सूत्रम ॥ ४२८ ॥