Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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सुत्रम्
॥४२७॥
आ शीत अने उष्ण लक्षणरूप-संयम, असंयपनो बीजो पर्याय, मुख दुःखरूप.छे. ते विवक्षाना कारणथी थाय छे. तेथी हवे, आचा। मुखपदनुं विवरण करे छे.
निवाणसुहं सायं सीईभूयं पयं अणावाहं । इहमवि जं किंचि सुहं तं सोयं दुक्खमवि उण्हं नि. ॥२०॥ ॥४२७॥
मोक्षसुखनु स्वरूप अहींयां मुखने शीत का छे, अने ते रागद्वेष विगेरेनां बयां जोडको दूर थवाथी घणुंज अने एकांत वाधारहित लक्षणवाळू निरुपाधिक परमार्थ चिंतामा विचारता मुक्तिनुं सुख तेज साचं सुख छे, पण वीजुं नथी. अने ते सुख आठे कर्मनो ताप दूर थबाथी
शीत छे. ते निर्वाण मुख बतावे छे, अने निर्वाण ते क्या कर्मनो क्षय जाणवो, अथवा विशिष्ट आकाश प्रदेशवाळू स्थान (सिद्धिस्थान) 8 तेमां (जीव निश्चल पणे) रहेवाथी निर्वाण सुख छे. अने आ वां पदो एक अर्थवाला छे. एटले साता शीतीभुत, अनावाधपद ए त्रणेनो अर्थ निर्वाण मुख छे. अने आ संसारमा पण सातावेदनीयना विपाकथी उदयमा आवेलुं सुख ते मनने आनंद आपत्राथी शीत छे. अने तेथी उलटुं पापथी उदयमां आवेलं दुःख ते उष्ण छे.
हवे कषाय विगेरे पदो कहे छे. डिज्झइ तिबकसाओ सोगभिभूओ उइन्नवेओ या उण्हयरो होय तयो कसायमाईवि 'ज' डहाइ ॥२०॥
तीव्र एटले घणा प्रमाणमां विपाक उदयमा आवतां कषायो जेने उदयमा आव्या होय ते बळे छे. आ कलाय अग्निवाळो जीव
Sax
ॐॐॐEOS
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