Book Title: Acharanga Stram Part 03 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * आगा * ॥४२६॥ ॥४२६॥ * धर्म ते श्रमण धर्ममा जे साधु प्रमाद करे, पोतानी क्रिया न करे. अथवा जेनाथी अर्थ सधाय ते धन धान्य, सोनुं विगेरे मे ळवया उपाय करे, तेवाने शीत (ठंडो ) परिषह कहे छे, पण जे साधु प्रसाद न करे अने संयममा उद्यम करे ते उष्ण परिषह । कहेवाय छे. (मूत्रमा 'ण' शोभा माटे छे) हवे उपशम पदनी व्याख्या करे छे. सीईओ परिनिव्वुओ य संतो तहेव पण्हाणो (ल्होओ) । होउवसंत कसाओतेणु वसंतोभवे जीवो २०६ उपशम गुण क्रोध विगेरेना उदयना अभावमा होय छे, अने ते कपाय अग्नि ठंडो थवाथी आत्मा ठंडो थाय छे, तथा क्रोध विगेरे अनिनी ज्वाळा बुझे त्यारे ते परिनिर्वृत थाय छे, अने रागद्वेष रुप अग्निना उपशमथी उपशांत छे तथा क्रोधादि परिताप | दर थवाथी आत्मा आनंदित थाय छे अने तेज सुखी छे कारण के जेने कषायो शांत छे तेज सुखी छे. अने तेथीज उपशांत कषा| यवाळो आत्मा शीत थाय छे. आ बधां पदों एक अर्थवाळां छे. एटले (१) शीतीभूत (२) परिनिर्वृत (३) शांत (४) प्रल्हाद. आ | उपशांत कषाय कहेवाय छे (आ पदोनो अर्थ क्रोधादिने शांत करवानो छे) हवे विरतिपद कहे . अभय करो जीवाणं सीयघरो संजमो भवइ सीओ। अस्संजमो य उपहो, एसो अन्नोऽविपज्जाओ ॥२०७॥ | जीवोने अभय करवानो आचार ते शीत (सुख) छे. ते, घर छे, ते, प्र. क्युं? उत्तर. सतर प्रकारनो संयम पाळबो ते शीत छे. कारण तेमां बधां दुःखनो हेतु जे रागद्वेष विगेरेना जोडलां छे, ते विरतिमां दुर थाय छे. एथी, उलटो असंयम ते उष्ण छे. * R-CGFSCSEKASIC CARRESTER For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 190